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REET & Teacher Exams: सम्पूर्ण शिक्षण विधियाँ (Complete Teaching Methods) - Handwritten Notes Download Free PDF

इस वीडियो में कन्हैया सर (Kanhaiya Educentre) द्वारा तैयार किए गए 'शिक्षण विधियों' (Teaching Methods) के सम्पूर्ण हस्तलिखित नोट्स (Handwritten Notes)
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यह पीडीएफ 'कन्हैया सर' द्वारा लिखित शिक्षण विधियों (Teaching Methods) के विस्तृत हस्तलिखित नोट्स हैं। यह सामग्री विशेष रूप से REET, CTET और अन्य शिक्षक भर्ती परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए तैयार की गई है।
इसमें शिक्षण के सिद्धांत, विधियाँ, सहायक सामग्री, भाषा कौशल और मूल्यांकन जैसे जटिल विषयों को बहुत ही सरल भाषा, डायग्राम और बिंदुओं (Points) के माध्यम से समझाया गया है। यह नोट्स त्वरित पुनरीक्षण (Quick Revision) और अवधारणाओं को स्पष्ट करने के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।

सम्पूर्ण शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods) एक ही posts में | REET, CTET, Grade 1 & 2 | Free PDF


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Heading: Kanhaiya Educentre Subject: REET - शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods) Note: कक्षानुसार हस्तलिखित ई-बुक (Class-wise Handwritten E-book) Teacher: कन्हैया सर (शिक्षण विधियाँ विषय विशेषज्ञ)

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Topic: शिक्षण विधियों का परिचय

  • गेस्टाल्टवादी / संज्ञानवादी विचारधारा:
  • हरबर्ट की अवधारणा:
  • हरबर्ट से पूर्व शिक्षा की अवधारणा:
  • शिक्षक (ज्ञान व अनुभव) -> शिक्षार्थी
  • अर्थात: शिक्षक के पास जो ज्ञान व अनुभव है, वह बालकों तक पहुंचा देना ही शिक्षा है।
  • हरबर्ट का खंडन:
  • हरबर्ट इस विचारधारा का खंडन करते हैं।
  • बालकों तक ज्ञान पहुँचाना ही शिक्षा नहीं है। बालक उन अनुभवों को सीख करके उसका व्यवहारीकरण कर देगा अर्थात जब शिक्षार्थी उस ज्ञान को अपने व्यवहार में ले आते हैं तो वह शिक्षा कहलाती है।
  • "बालकों को विचार देकर विचारों का व्यवहारीकरण कर देना ही शिक्षा है।"

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Topic: विचार के सोपान / चरण (हरबर्ट)

  1. निरीक्षण
  2. तुलना
  3. प्रथा / सामान्यीकरण
  4. प्रयोग
  5. विचार

विचार पहुँचाने का क्रम (हरबर्ट की पंचपदी योजना):

  1. स्पष्टता: (i) प्रस्तावना (पूर्व ज्ञान), (ii) प्रस्तुतीकरण (नवीन ज्ञान)
  2. व्यवस्था / संबद्धता: (iii) तुलना, (iv) सामान्यीकरण (नियम निकालना)
  3. विधि / प्रयोग: (v) प्रयोग / अभ्यास

नोट:

  • 'प्रस्तावना' व 'प्रस्तुतीकरण' पद हरबर्ट के शिष्य 'जीलर' ने हरबर्ट की उपस्थिति में दिए।
  • हरबर्ट की पाठयोजना जर्मन प्रणाली पर आधारित है।

आलोचनाएँ:

  • यह स्मृति स्तर पर आधारित है।
  • बोध निष्क्रिय रहता है।
  • शिक्षक की स्वतंत्रता का हनन होता है।
  • शिक्षक यंत्रवत होता है।
  • इसमें आगमन-निगमन विधि का समावेश है।

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Topic: ब्लूम की अवधारणा (Bloom's Taxonomy)

  • त्रिपदी: (1) उद्देश्य <-> (2) अधिगम अनुभव <-> (3) मूल्यांकन
  • परिभाषा: व्यवहार में होने वाला अपेक्षित परिवर्तन।
  • मूल्यांकन: उद्देश्य की सीमा जांचने की प्रक्रिया।

उद्देश्य वर्गीकरण (3 पक्ष):

  1. ज्ञानात्मक (6 भाग)
  2. भावात्मक (6 भाग)
  3. क्रियात्मक (6 भाग)

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Topic: उद्देश्यों के प्रकार

1. शैक्षिक उद्देश्य (सामान्य उद्देश्य):

  • यह संपूर्ण पाठ्यक्रम को निर्धारित करके बनाए गए उद्देश्य हैं।
  • जैसे - हिंदी का पाठ्यक्रम।
  • ये उद्देश्य व्यापक होते हैं।

2. शिक्षण उद्देश्य (विशिष्ट उद्देश्य):

  • यह किसी एक पाठ या विषयवस्तु को निर्धारित करके बनाए जाते हैं।
  • जैसे - पाठ-1 'छोटा जादूगर'।
  • शैक्षिक उद्देश्य का निर्माण एक बार होता है, जबकि शिक्षण उद्देश्य बार-बार बनाए जाते हैं।
  • मूल्यांकन का सीधा संबंध शिक्षण उद्देश्यों से होता है।

तालिका (Table):

  • उद्देश्य: ज्ञान
  • व्यवहारगत परिवर्तन:
  1. प्रत्यास्मरण (स्मृति में याद करना)
  2. प्रत्यभिज्ञान (पहचान करना)
  • तथ्य, सिद्धांत, नियम, परिभाषा बताना।

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Topic: उद्देश्यों के व्यवहारगत परिवर्तन (जारी...)

2. अवबोध (Understanding):

  • अंतर करना, समानता प्राप्त करना, तुलना करना, वर्गीकरण करना, अनुवाद करना, उदाहरण देना, त्रुटि सुधार करना, सही स्थिति का पता लगाना, अपने शब्दों में परिभाषा देना।

3. ज्ञानोपयोग (Application):

  • विश्लेषण-संश्लेषण करना, भविष्यवाणी करना, परिकल्पना का निर्माण करना, समस्या समाधान करना।

4. कौशल (Skill):

  • (ज्ञान का अधिक प्रयोग करने पर वह कौशल बन जाता है)
  • चित्र बनाना, चार्ट बनाना, मॉडल बनाना, प्रयोगशाला की सामग्री सही स्थापित करना, गणना करना, शुद्ध उच्चारण करना।

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Topic: मॉरिसन की अवधारणा (इकाई योजना)

मॉरिसन (इकाई योजना के जनक):

  1. अन्वेषण (Exploration) / पूर्व ज्ञान
  2. प्रस्तुतीकरण (Presentation)
  3. आत्मीकरण / परिपाक (Assimilation)
  4. व्यवस्था / संगठन (Organization)
  5. वाचन / अभिव्यक्तिकरण (Recitation)

अन्य बिंदु:

  • ब्लूम के उद्देश्य के स्तर:
  1. ज्ञान (याद रखना)
  2. अवबोध (समझना)
  3. अनुप्रयोग (प्रयोग करना)
  4. विश्लेषण
  5. संश्लेषण
  6. मूल्यांकन

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Topic: पाठ-योजना का प्रारूप

1. आवश्यक पूर्ति (Blackboard entries):

  • कक्षा, दिनांक, विषय, प्रकरण, कालांश, समयावधि।
  • नोट:
  • श्यामपट्ट पर कार्य करते समय शिक्षक बायीं से दायीं ओर बढ़ता है।
  • शिक्षण के दौरान शिक्षक अपनी स्थिति में परिवर्तन उद्दीपन परिवर्तन के लिए करता है।
  • श्यामपट्ट को ऊपर से नीचे की तरफ साफ किया जाता है।
  • श्यामपट्ट पर कार्य करते समय हाथ का कोण 45 डिग्री का बनता है।
  • श्यामपट्ट को 'शिक्षक का परममित्र' कहा जाता है।
  • श्यामपट्ट का सर्वप्रथम शैक्षणिक प्रयोग विलियम जेम्स ने किया।

2. उद्देश्य का निर्माण:

  • ज्ञान, अवबोध, ज्ञानोपयोग, कौशल, अभिरुचि, अभिवृत्ति।

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Topic: पाठ-योजना के चरण (जारी...)

3. शिक्षण विधियाँ / प्रविधियों का चयन 4. सहायक सामग्री का चयन 5. पूर्वज्ञान:

  • पूर्व ज्ञान को जांचने की प्रक्रिया।

6. प्रस्तावना (Introduction):

  • प्रस्तावना व्यवहार को आयोजित करने की प्रक्रिया है।
  • समय: 5-7 मिनट।
  • प्रश्नों की संख्या: 5-7 होती है (Zig-zag क्रम में)।
  • यदि प्रस्तावना कहानी, कविता या दृष्टांत के द्वारा की जा रही है, तो कम से कम 1 प्रश्न पूछना अनिवार्य है।

प्रस्तावना के गुण:

  • पूर्व ज्ञान पर आधारित होने चाहिए।
  • क्रमबद्धता होनी चाहिए।
  • सरल से कठिन की ओर।
  • प्रसंगानुकूलता।
  • तारतम्यता।

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Topic: पाठ-योजना के चरण (समापन)

7. उद्देश्य कथन:

  • (यहाँ प्रकरण लिखा जाएगा)।

8. प्रस्तुतीकरण (Presentation):

  • यह पाठ-योजना का मुख्य बिंदु कहा जाता है।
  • इसमें शिक्षण बिंदु होते हैं।
  • श्यामपट्ट सार।

9. बोध / पुनरावृत्ति प्रश्न:

  • पाठ की पुनरावृत्ति के लिए।

10. मूल्यांकन:

  • शिक्षण उद्देश्यों की सीमा जांचेंगे।

11. गृहकार्य:

  • अभ्यास के लिए।

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Topic: शिक्षण अधिगम सहायक सामग्री (T.L.M.)

  • अर्थ: वह सामग्री जो शिक्षण के दौरान निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति में सहायता प्रदान करे।
  • सहायक सामग्री बालकों के ज्ञान को प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर ले जाने में सहायता करती है।
  • सहायक सामग्री 'ज्ञात से अज्ञात' की ओर लेकर जाती है।
  • सहायक सामग्री 'स्थूल से सूक्ष्म' की ओर ले जाती है।
  • सहायक सामग्री 'सामान्य से विशिष्ट' की ओर ले जाती है।

सहायक सामग्री के महत्व:

  • बालकों में जिज्ञासा उत्पन्न होती है।
  • अनुभवों को गति मिलती है।
  • विषय-वस्तु का वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है।
  • बालकों में सीखा गया ज्ञान स्थायी होता है।
  • तुलना शक्ति का विकास होता है।
  • शक्ति व ऊर्जा को बचाती है।

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Topic: सहायक सामग्री के महत्व व उद्देश्य

महत्व (जारी...):

  • बालकों के विचारों में प्रवाहात्मकता (गतिशीलता) आती है।
  • पाठ सरल व रोचक बन जाता है।
  • बालक सक्रिय रहता है।
  • विषयवस्तु का विस्तार होता है।
  • विषय के प्रति रुचि जागृत हो जाती है।

शिक्षण सहायक सामग्री के उद्देश्य:

  • पाठ को रोचक बनाना।
  • पाठ को आकर्षक बनाना।
  • पाठ में स्पष्टता लाना।
  • क्रियाशीलता को बढ़ाना।
  • अवधान (ध्यान) की क्षमता बढ़ाना।
  • पाठ में सजीवता लाना।
  • सीखने की गति में वृद्धि करना।

अवलोकन शक्ति को मजबूत करना।

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Topic: सहायक सामग्री के उद्देश्य व गुण

उद्देश्य (जारी...):

  • कठिन विषय को सरल रूप देना।
  • अमूर्त विषयों को मूर्त रूप देना।
  • बालकों की अभिरुचियों पर आशानुकूल प्रभाव डालना।
  • बालकों को उनकी योग्यता के अनुसार शिक्षा देना।

सहायक सामग्री के गुण / प्रयोग में ध्यान रखने योग्य बातें:

  • सहायक सामग्री उद्देश्य की पूर्ति करने वाली होनी चाहिए।
  • आकार कक्षा के अनुरूप होना चाहिए।
  • प्रभावशाली होनी चाहिए।
  • अल्पलागत (कम खर्चीली) होनी चाहिए।
  • अनुपयोगी सामग्री (Waste material) का उपयोगी प्रयोग करना चाहिए।
  • उपयोग के पश्चात सामग्री को हटा देना चाहिए।
  • बहुउद्देश्यीय होनी चाहिए।

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Topic: सहायक सामग्री के प्रकार

1. इन्द्रियों के आधार पर:

  • (i) श्रव्य सामग्री: सुनकर अर्थ ग्रहण करना।
  • (ii) दृश्य सामग्री: देखकर अर्थ ग्रहण करना।
  • (iii) श्रव्य-दृश्य सामग्री: सुनकर व देखकर अर्थ ग्रहण करना।

2. प्रक्षेपण के आधार पर:

  • (i) प्रक्षेपित सामग्री: वह सामग्री जिसका प्रक्षेपण हो (उदा. प्रोजेक्टर)।
  • (ii) अप्रक्षेपित सामग्री: वह सामग्री जिसका प्रक्षेपण नहीं हो (उदा. चार्ट, मॉडल आदि)।

3. तकनीकी के आधार पर:

  • (i) सॉफ्टवेयर: वह सामग्री जिसको छुआ नहीं जा सकता (उदा. चित्र, ग्राफ, मानचित्र)। [नोट: यहाँ मूल पाठ में 'सेटेलाइट' लिखा है, जो शायद गलत उदाहरण हो सकता है, पर हस्तलिखित में यही है]

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Topic: सहायक सामग्री के प्रकार (जारी...)

  • (ii) हार्डवेयर: वह सामग्री जिसको छुआ जा सकता है (उदा. रेडियो, प्रोजेक्टर आदि)।

4. NCERT के आधार पर (6 प्रकार):

  • (i) ग्राफिक्स सामग्री (चित्र, चार्ट)।
  • (ii) प्रदर्शन / डिस्प्ले सामग्री (श्यामपट्ट, बुलेटिन बोर्ड)।
  • (iii) प्रक्षेपित सामग्री (प्रोजेक्टर, स्लाइड)।
  • (iv) श्रव्य सामग्री (रेडियो, ग्रामोफोन)।
  • (v) त्रिआयामी (3D) सामग्री (वास्तविक सामग्री, मॉडल)।
  • (vi) प्रक्रिया सामग्री (भ्रमण, अभिनय)।

अन्य प्रकार:

  • प्रिंट सहायक सामग्री (अखबार, किताब)।
  • इलेक्ट्रॉनिक सामग्री (कम्प्यूटर, कैलकुलेटर)।

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Topic: दृश्य सामग्री (Visual Aids)

दृश्य सामग्री का परीक्षण (प्रो. जे.जे. वेबर):

  • प्रो. वेबर के अनुसार अनुभूतियाँ तीन प्रकार की होती हैं:
  1. दृश्य अनुभूतियाँ - 40% (Note: Text mentions 85% in diagram context likely referring to total visual impact, but usually Weber is 40%). [हस्तलिखित में 85% लिखा है]
  2. श्रव्य अनुभूतियाँ - 25%
  3. स्पर्श अनुभूतियाँ - 17%

प्रमुख दृश्य सामग्री:

  1. श्यामपट्ट (Blackboard): यह लकड़ी के सपाट गत्ते का बना होता है।
  2. फ्लेनल बोर्ड / फलालीन बोर्ड:
  • यह लकड़ी के खुरदरे गत्ते का बना होता है।

इस पर वेलवेट या खादी का कपड़ा लगाया जाता है।

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Topic: दृश्य सामग्री (जारी...)

बुलेटिन बोर्ड vs फ्लेनल बोर्ड (अंतर):

  • बुलेटिन बोर्ड: इसका प्रयोग विद्यालय स्तर पर सामान्य होता है। सूचनाएं दीर्घकालीन रहती हैं।
  • फ्लेनल बोर्ड: इसका प्रयोग कक्षा स्तर पर विशिष्ट होता है। सूचनाएं अल्पकालीन रहती हैं।

3. फिल्म स्ट्रिप: चौड़ाई 35 MM। पदार्थ - सेलुलोज एसीटेट। 4. मॉडल / प्रतिरूप: वास्तविक वस्तु का मिलता-जुलता रूप। * स्थिर मॉडल (जो गतिशील न हो)। * कार्यकारी मॉडल (जो गतिशील हो)। 5. प्रदर्शन सामग्री: चित्र, चार्ट, फोटो आदि। मानचित्र, ग्लोब।

प्रोजेक्टर: एक ऐसी सामग्री जिसमें आप एक छोटे रूप को बड़े रूप में देख सकते हैं। (प्रक्षेपी + दृश्य सामग्री)।

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Topic: प्रोजेक्टर के प्रकार

  • (i) डायस्कोप (Magic Lantern/जादू की लालटेन): कांच की स्लाइड का प्रयोग। अंधेरे की आवश्यकता अधिक।
  • (ii) एपिस्कोप (चित्र विस्तारक यंत्र): अपारदर्शी वस्तुओं के लिए। कांच की स्लाइड का प्रयोग नहीं किया जाता। पुस्तक के चित्र दिखाने में उपयोगी।
  • (iii) एपिडायस्कोप: डायस्कोप + एपिस्कोप दोनों का मिश्रण।
  • (iv) O.H.P (Over Head Projector): यह एक प्रकार का पारदर्शी प्रोजेक्टर है। इसमें प्लास्टिक ट्रांसपेरेंसी (Sheet) का प्रयोग होता है। शिक्षक छात्र की ओर मुख करके पढ़ा सकता है।
  • (v) L.C.D: लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले प्रोजेक्टर।
  • (vi) DLP: डिजिटल लाइट प्रोसेसिंग प्रोजेक्टर।

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Topic: अन्य दृश्य सामग्री

6. वास्तविक पदार्थ (Realia): वह वास्तविक पदार्थ जो अपने वास्तविक स्वरूप में हो। 7. डायोरमा (Diorama): त्रिविमीय दृश्य (कलाकृति के रूप में)। 8. सर्च इंजन: Google, Yahoo. 9. वर्ल्ड वाइड वेब (WWW)। 10. सेक्सटेंट: दो वस्तुओं के बीच के कोण को मापने में उपयोगी। 11. संग्रहालय (Museum)। 12. ईमेल: इलेक्ट्रॉनिक मेल। 13. टेलनेट: एक से अधिक कंप्यूटर को आपस में जोड़कर विषयवस्तु का प्रदर्शन करना।14. यूजनेट: एक से अधिक बुलेटिन बोर्ड। 15. चैट ग्रुप: संवाद के लिए।

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Topic: श्रव्य सामग्री (Audio Aids)

1. ग्रामोफोन:

  • जनक: थॉमस अल्वा एडिसन।
  • प्रयोग: संगीत व नृत्य की शिक्षा में।
  • उपनाम: 'सुई का बाजा' या 'कुत्ते का बाजा' (प्रतीक चिन्ह के कारण)।
  • इसकी रिकॉर्डिंग स्थायी होती थी।

2. लिंग्वाफोन:

  • जनक: (ग्रामोफोन का सुधरा रूप)।
  • ध्वनियाँ अस्थायी होती हैं, उन्हें हटाया जा सकता है।
  • भाषा प्रयोगशाला में सर्वाधिक प्रयोग।
  • भाषा उच्चारण सिखाने में उपयोगी।

3. रेडियो:

  • जनक: मार्कोनी।
  • दूरस्थ शिक्षा का सशक्त माध्यम।
  • बड़े स्तर पर शिक्षा देने के लिए उपयोगी।
  • दोष: कार्यक्रम का पुनः प्रसारण नहीं होता (एक-तरफ़ा)।

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Topic: श्रव्य व श्रव्य-दृश्य सामग्री (जारी...)

5. टेप रिकॉर्डर:

  • जनक: वाल्डेमर पॉल्सन
  • इसमें चुम्बकीय टेप का प्रयोग होता है।
  • रेडियो की समय सीमा इसके द्वारा समाप्त की जा सकती है (कार्यक्रम रिकॉर्ड करके बाद में सुना जा सकता है)।

श्रव्य-दृश्य सामग्री (Audio-Visual Aids):

1. टेलीविजन (Television):

  • जनक: जे.एल. बेयर्ड (J.L. Baird)
  • पुराना नाम: 'दी टेलीवाइजर्स'
  • सर्वप्रथम कार्यक्रम: कठपुतली (नाम - "स्कीटी")

अन्य साधन: 2. प्रेजेंटेशन स्लाइड 3. दूरदर्शन 4. फिल्में (वृत्त चित्र / डॉक्यूमेंट्री फिल्म) 5. नाटक, अभिनय, ड्रामा 6. सैटेलाइट 7. इंटरनेट, यू-ट्यूब 8. मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट

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Topic: सहायक सामग्री के सिद्धांत

1. सापेक्षिक प्रभावशीलता का सिद्धांत (एडगर डेल का अनुभव शंकु):

  • प्रतिपादक: एडगर डेल
  • इन्होंने ज्यामितीय आकृति 'शंकु' (Cone of Experience) का प्रयोग किया।

शंकु का क्रम (शीर्ष से आधार की ओर):

  1. शाब्दिक सामग्री (Verbal): प्रभाव न्यून (सबसे कम)। केवल शब्द आते हैं।
  2. अप्रक्षेपित सामग्री: प्रभाव शाब्दिक सामग्री से अधिक (चार्ट, मॉडल आदि)।
  3. प्रक्षेपी सामग्री: अप्रक्षेपी से अधिक प्रभावी (स्लाइड, प्रोजेक्टर)।
  4. प्रक्रिया सामग्री (Direct Experience): भ्रमण, वृत्त चित्र, वास्तविक अनुभव। इसका प्रभाव सर्वाधिक होता है।

नोट: श्रव्य-दृश्य सामग्री किसी भी टॉपिक को पढ़ाने में अधिक उपयोगी है।

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Topic: अन्य सिद्धांत

  1. सक्रियता का सिद्धांत
  2. क्रियाशीलता का सिद्धांत
  3. विषयवस्तु स्पष्टता का सिद्धांत
  4. गतिशीलता का सिद्धांत

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Topic: शिक्षण विधियाँ - आगमन विधि (Inductive Method)

1. आगमन विधि:

  • जनक: अरस्तू (Aristotle)
  • इसके अंतर्गत बालकों के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं, बालक उन्हें हल करते समय नियम का निर्धारण करते हैं।
  • नियमों का संशोधन शिक्षक द्वारा किया जाता है।

आगमन के सोपान / चरण:

  1. उदाहरण प्रस्तुत करना।
  2. निरीक्षण करना।
  3. नियम का निर्धारण करना (सामान्यीकरण)।
  4. प्रयोग / परीक्षण करना (सत्यापन)।

विशेषता:

  • इसमें बालक व शिक्षक दोनों सक्रिय रहते हैं। आगमन विधि के सभी सोपानों में बालक सक्रिय रहता है।
  • इसे 'अपूर्ण विधि' कहा जाता है (क्योंकि यह धीमी है)।

शिक्षण सूत्र (Maxims):

  1. उदाहरण से नियम की ओर
  2. ज्ञात से अज्ञात की ओर
  3. विशिष्ट से सामान्य की ओर

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Topic: आगमन विधि (जारी...)

शिक्षण सूत्र (जारी): 4. स्थूल से सूक्ष्म की ओर

आगमन की सहायक विधियाँ:

  1. समवाय / सहयोग प्रणाली
  2. भाषा संसर्ग विधि
  3. बेसिक शिक्षा प्रणाली

आगमन विधि के गुण:

  • यह मनोवैज्ञानिक विधि है (बालक सक्रिय रहता है)।
  • चिंतन, मनन शक्तियों का विकास होता है।
  • खोज प्रवृत्ति का विकास होता है।
  • पूर्व ज्ञान को नवीन ज्ञान से जोड़ती है।
  • गणित / व्याकरण के लिए श्रेष्ठ विधि है।

आगमन विधि के दोष:

  • यह अपूर्ण विधि है।
  • समय व श्रम अधिक लगता है।

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Topic: निगमन विधि (Deductive Method)

आगमन के दोष (जारी):

  • बड़ी कक्षा के बालक कम रुचि रखते हैं।
  • केवल छोटी कक्षाओं के लिए अधिक उपयोगी।
  • पाठ्यक्रम समय पर पूरा नहीं हो पाता।

2. निगमन विधि:

  • जनक: प्लेटो (Plato)
  • इस विधि के अंतर्गत पहले नियम समझाए जाते हैं, तथा उसके बाद उदाहरणों के माध्यम से विषय-वस्तु को जाना जाता है।

निगमन विधि के सोपान:

  1. नियम प्रस्तुत करना।
  2. नियम को स्पष्ट करना / व्याख्या।
  3. प्रयोग / उदाहरण।
  4. परीक्षण / सत्यापन करना।

शिक्षण सूत्र:

  1. नियम से उदाहरण की ओर
  2. सामान्य से विशिष्ट की ओर

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Topic: निगमन विधि (जारी...)

शिक्षण सूत्र (जारी): 3. सूक्ष्म से स्थूल की ओर 4. अज्ञात से ज्ञात की ओर

निगमन की सहायक विधियाँ:

  • सूत्र विधि
  • पाठ्यपुस्तक विधि

निगमन विधि के गुण:

  • तीव्र गति से विकसित होने वाली विधि।
  • पाठ्यक्रम समय पर पूर्ण हो जाता है।
  • सभी स्तर पर प्रयोग किया जा सकता है।
  • यह एक पूर्ण विधि है।

निगमन विधि के दोष:

  • यह अमनोवैज्ञानिक विधि है।
  • शिक्षक केन्द्रित है।
  • बालकों में नीरसता (निष्क्रियता) उत्पन्न करती है।
  • रटने पर बल दिया जाता है।

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Topic: संस्कृत शिक्षण सन्दर्भ व प्रायोजना विधि

नोट (संस्कृत सन्दर्भ में):

  • आगमन के प्रवर्तक -> पतंजलि (महाभाष्यकार)
  • निगमन के प्रवर्तक -> पाणिनि (व्याकरण)

3. प्रायोजना / प्रोजेक्ट विधि (Project Method):

  • विचारधारा: जॉन ड्यूवी (प्रयोजनवाद)
  • जनक: किलपैट्रिक (William Heard Kilpatrick)
  • शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग: रिचर्ड
  • भारत में: 1937 में महात्मा गाँधी की बुनियादी शिक्षा में नजर आया।

परिभाषाएँ:

  • किलपैट्रिक: "प्रोजेक्ट सोद्देश्यपूर्ण कार्य है, जिसे संलग्नता के साथ सामाजिक वातावरण में पूरा किया जाता है।"
  • स्टीवेन्सन: "प्रोजेक्ट एक समस्यामूलक कार्य है, जिसे स्वाभाविक परिस्थितियों में निष्पादित किया जाता है।"
  • बेलार्ड: "प्रोजेक्ट वास्तविक जीवन का एक भाग है जिसे विद्यालय में लाया गया।"

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Topic: प्रायोजना विधि के सोपान व सिद्धांत

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • इस विधि में शिक्षक की भूमिका मार्गदर्शक (Guide) की होती है।
  • शिक्षक यहाँ दार्शनिक, मित्र व निरीक्षक तीनों रूप में कार्य करते हैं।
  • थार्नडाइक के मुख्य नियमों (तत्परता, प्रभाव, अभ्यास) का प्रयोग होता है।

प्रायोजना विधि के सोपान (Steps):

  1. परिस्थिति का निर्माण करना।
  2. योजना का चयन / उद्देश्य निर्धारण।
  3. कार्यक्रम का निर्धारण करना (Planning)।
  4. कार्यक्रम का क्रियान्वयन करना।
  5. मूल्यांकन।
  6. लेखा-जोखा करना (Recording)।

सिद्धांत:

  1. क्रियाशीलता का सिद्धांत।
  2. उद्देश्यपूर्णता का सिद्धांत।
  3. वास्तविकता का सिद्धांत।
  4. स्वतंत्रता का सिद्धांत।
  5. स्वाभाविकता का सिद्धांत।
  6. नियोजन का सिद्धांत।
  7. उपयोगिता का सिद्धांत।
  8. समन्वय (सह-संबंध) का सिद्धांत (रायबर्न द्वारा सबसे श्रेष्ठ)।

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Topic: प्रायोजना के प्रकार

किलपैट्रिक के अनुसार प्रकार (पुस्तक: फाउंडेशन ऑफ मेथड):

  1. रचनात्मक / उत्पादनात्मक: (कुछ नया बनाना)
  2. अभ्यासात्मक / कौशलात्मक: (कौशल सीखना)
  3. आनंदात्मक / उपभोक्तात्मक: (गीत सुनना, कविता पाठ)
  4. समस्यात्मक: (समस्या हल करना)

थॉमस एम. रिस्क के अनुसार:

  1. उत्पादन परियोजना
  2. विशिष्ट अधिगम परियोजना
  3. बौद्धिक परियोजना

सामान्य प्रकार:

  • व्यक्तिगत (Individual)
  • सामूहिक (Group)

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Topic: प्रायोजना विधि के गुण व दोष

गुण:

  • बालकों की क्रियाशीलता में वृद्धि।
  • प्रजातांत्रिक विधि है।
  • सामाजिक प्रणाली है।
  • खोज प्रवृत्ति का विकास।
  • मनोवैज्ञानिक व बालकेन्द्रित विधि।
  • स्थायी ज्ञान (प्रत्यक्ष अनुभव)।
  • नेतृत्व भावना, तर्क, चिंतन, आत्मविश्वास का विकास।

दोष:

  • खर्चीली विधि है।
  • समय अधिक लगता है।
  • पाठ्यक्रम समय पर पूर्ण नहीं होता।

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Topic: पाठशाला विधि (Traditional Method)

4. पाठशाला विधि:

  • यह व्यक्तिगत शिक्षा प्रणाली थी।
  • उपनाम: पंडित विधि / गुरुकुल पद्धति।
  • उद्देश्य: ज्ञान का हृदय संगम कराना।
  • यह विधि मनन तथा श्रवण से कंठस्थीकरण (रटने) पर बल देती थी।
  • केवल 2 कौशल (सुनना, बोलना - श्रवण, मनन) का विकास।
  • शिक्षक केन्द्रित विधि थी।
  • अमनोवैज्ञानिक विधि है।
  • मुख्य बिंदु (शिक्षा के): धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
  • भारतीय संस्कृति की रक्षा करना।
  • इसे प्राचीन विधि कहा जाता है।

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Topic: पाठशाला विधि व मौखिक विधि

  • शास्त्रों का गंभीर अध्ययन कराया जाता था।
  • गुरु-शिष्य संबंध दृढ़ होते थे।
  • परायण विधि: वेद मंत्रों को बिना अर्थ समझे हूबहू याद कर लिया जाता था।
  • आचार्य: जिन्हें संपूर्ण मंत्र याद हों।

मौखिक विधि (Oral Method):

  • यह परंपरागत विधि है।
  • अभिव्यक्ति या उच्चारण कौशल का विकास सर्वाधिक होता है।
  • वाद-विवाद विधि (Debate):
  • यह अमनोवैज्ञानिक है (कुछ संदर्भों में)।

  • किसी विषय पर अपने विचार तथ्यों के साथ प्रस्तुत करना।

  • पक्ष-विपक्ष दोनों हो सकते हैं।

  • सम्प्रेषण कौशल का विकास अधिक होता है।

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Topic: सूत्र विधि व व्याकरण विधि

वाद-विवाद (जारी):

  • बालकों में आत्मविश्वास की वृद्धि।
  • चिंतन स्तर का विकास।
  • बिना पूर्व तैयारी के विचार प्रस्तुत करना वाद-विवाद कहलाता है।

सूत्र विधि:

  • संस्कृत में सर्वाधिक प्रयोग।
  • बालकों को सूत्र रटाकर कंठस्थ कराए जाते हैं।
  • जटिल विषयों को समझने में उपयोगी (व्याकरण, गणित)।
  • 'गागर में सागर' भरने का कार्य करती है।

व्याकरण विधि:

  • भाषा का शुद्ध प्रयोग करना सिखाया जाता है।
  • व्याकरण भाषा का प्राण कहलाती है।

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Topic: भाषण, कथा-कथन व व्याख्यान विधि

  • पतंजलि ने व्याकरण को 'शब्दानुशासन' कहा है।

भाषण विधि:

  • कठिन विषय को समझाने के लिए विस्तृत व्याख्या का सहारा लेते हैं।
  • अमनोवैज्ञानिक विधि।
  • बालकों में नीरसता आती है।

कथा-कथन विधि:

  • विषय को रुचिकर बनाने के लिए।
  • नैतिक मूल्यों का विकास होता है।

व्याख्यान विधि (Lecture Method):

  • शंका समाधान के लिए प्रयोग।
  • विषयवस्तु की विस्तृत जानकारी दी जाती है।
  • शब्द भंडार में वृद्धि।

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Topic: व्याख्यान विधि व खोज विधि

व्याख्यान के पद:

  1. पदच्छेद (बांटना)
  2. पदार्थोक्ति (अर्थ बताना)
  3. विग्रह (वाक्य योजना)
  4. वाक्य योजना
  5. आक्षेप (शंका)
  6. समाधान

13. खोज विधि / अन्वेषण विधि (Heuristic Method):

  • जनक: आर्मस्ट्रांग (H.E. Armstrong)
  • शब्द: 'ह्यूरिस्को' (Greek word)। अर्थ: "मैं खोजता हूँ" (I find out)।
  • शिक्षक का मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण जरूरी है।
  • मुख्य उद्देश्य: बालकों में वैज्ञानिक / मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास करना।
  • प्रथम प्रयोग रसायन विज्ञान में किया गया।

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Topic: खोज विधि (जारी...)

  • यह गेस्टाल्टवादियों के विचारों का अनुसरण करती है।

सोपान / चरण:

  1. समस्या का प्रस्तुतीकरण।
  2. निरीक्षण करना।
  3. परिकल्पना का निर्माण।
  4. परीक्षा करना / सत्यापन।
  5. नियम निर्धारण / निष्कर्ष।

गुण:

  • स्वयं करके सीखने पर बल देती है।
  • प्राप्त ज्ञान स्थायी होता है।
  • समस्या-समाधान प्रवृत्ति विकसित होती है।
  • बालक सक्रिय रहता है।
  • आत्मविश्वास व आत्मनिर्भरता।

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Topic: खोज विधि (दोष) व समस्या समाधान विधि

खोज विधि के दोष:

  • समय अधिक लगता है।
  • पाठ्यक्रम समय पर पूर्ण नहीं होता।
  • व्याकरण, गणित, विज्ञान जैसे विषयों पर अधिक उपयोगी, अन्य पर कम।
  • प्रयोगशाला व संसाधनों का अभाव रहता है।
  • कमजोर बालकों के लिए कम उपयोगी।

14. समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method):

  • जनक: सुकरात / सेंट थॉमस।
  • आधुनिक जनक: जॉन ड्यूवी / किलपैट्रिक।
  • यह विधि गेस्टाल्टवादियों की विचारधारा का अनुसरण करती है।

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Topic: समस्या समाधान विधि (सोपान)

सोपान / चरण:

  1. समस्या का चयन करना।
  2. समस्या के कारणों का पता लगाना।
  3. परिकल्पना का निर्माण / सामग्री एकत्रीकरण।
  4. उत्तम समाधान खोजना।
  5. मूल्यांकन / निष्कर्ष।

अवस्थाएँ (Stages):

  1. अस्पष्ट स्थिति।
  2. सूत्रीकरण।
  3. समस्या का पूर्ण ज्ञान।
  4. वर्णना (Description)।
  5. प्रायोगीकरण।
  6. प्रमाणीकरण / निश्चयन।

गुण/दोष: खोज विधि के समान।

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Topic: खेल विधियाँ (Play-way Method)

15. खेल विधियाँ:

  • जनक: हेनरी कॉल्डवेल कुक (Henry Caldwell Cook)
  • पुस्तक: 'Play Way'
  • अंग्रेजी विषय के लिए अधिक उपयोगिता।
  • भाव: "बिना मुसीबत तथा बिना आंसुओं के शिक्षा देना।"

प्रमुख कथन:

  • "जिस प्रकार एक मछली जल से दूर नहीं रह सकती, उसी प्रकार बालक भी खेल से दूर नहीं रह सकता।"

गुण:

  • बालक सक्रिय भूमिका निभाता है।
  • बालक रुचि लेता है।
  • बालकेन्द्रित व मनोवैज्ञानिक विधि है।
  • करके सीखने पर आधारित।
  • प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त होता है।

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Topic: खेल विधियाँ (गुण व दोष) व साहचर्य विधि

खेल विधियों के गुण (जारी):

  • ज्ञान लम्बे समय तक स्थायी होता है।
  • बालकों में समूह भावना का विकास होता है।
  • प्रतिस्पर्धा का भाव विकसित होता है।

दोष:

  • दुर्घटना का खतरा बढ़ जाता है।
  • समय व धन का खर्चा अधिक।
  • बालक शीघ्र थक जाते हैं।
  • संसाधनों का अभाव।
  • बालक खेल को केवल खेल समझते हैं (उद्देश्य भटक जाता है)।

16. साहचर्य विधि (Association Method):

  • जनक: मारिया मॉन्टेसरी (Maria Montessori)
  • कार्ड व चित्रों के माध्यम से शिक्षा दी जाती है।
  • छोटी कक्षाओं में अधिक उपयोगी।

17. मॉन्टेसरी विधि:

  • जनक: मारिया मॉन्टेसरी (इटली)
  • 3-7 वर्ष के बालकों के लिए उपयोगी।
  • इन्होंने 'मंदबुद्धि बालकों' पर प्रयोग किए।

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Topic: मॉन्टेसरी व किंडरगार्टन विधि

मॉन्टेसरी विधि की विशेषताएं:

  1. कर्मेन्द्रियों पर आधारित शिक्षा: (हाथ, पैर आदि का प्रयोग)। आत्मनिर्भरता का विकास।
  2. ज्ञानेन्द्रियों पर आधारित शिक्षा: (आंख, कान, नाक आदि)। एक बार में केवल 1 ज्ञानेन्द्रिय का प्रयोग करना।

नोट: 1939 में मॉन्टेसरी भारत आई थीं और 10 वर्ष तक भारत में इस विधि का प्रचार किया।

18. किंडरगार्टन विधि (Kindergarten Method):

  • जनक: फ्रोबेल (Froebel) - जर्मनी (1840)
  • अर्थ: बच्चों का उद्यान (Garden of Children)।
  • कहानी, कविता आदि सुनाकर शिक्षा प्रदान करना।
  • रूपक:
  • शिक्षक = माली
  • विद्यालय = उद्यान (बागीचा)
  • शिक्षार्थी = अविकसित पौधा
  • नोट: 4-8 वर्ष तक के बालकों को शिक्षा दी जाती है। भारत में प्रचलित आंगनबाड़ी, बालवाड़ी, LKG, UKG इसी विधि की देन है।

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Topic: डाल्टन, विनेटिका व डेकाली विधि

19. डाल्टन योजना / विधि (Laboratory Plan):

  • जनक: हेलन पार्कहर्स्ट (Helen Parkhurst)
  • समय सारणी (Timetable) निश्चित नहीं होती है।
  • परीक्षा का भय नहीं होता।
  • बालक अपनी रुचि के अनुसार जिस विषय को जब तक मन करे पढ़ सकता है।

20. विनेटिका विधि / प्रणाली:

  • जनक: डॉ. कार्लटन वाशबर्न (Carleton Washburne)
  • बालक को पूर्ण स्वतंत्रता दी जाती है।
  • विषयवस्तु को छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित कर दिया जाता है।

21. डेकाली विधि:

  • जनक: डॉ. ओविड डेकाली (Ovide Decroly)
  • 'जीवन के लिए जीवन द्वारा शिक्षा'।
  • व्यक्तिगत भिन्नता पर आधारित शिक्षा।
  • बालकों को उनकी योग्यता तथा कुशलता के आधार पर विभाजित करके शिक्षा दी जाती है।

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Topic: जैकटाक व बेसिक शिक्षा

22. जैकटाक विधि:

  • जनक: जैकटाक (Jacotot)
  • बालक अपनी त्रुटियों का संशोधन स्वयं करता है (स्वयं सुधार)।

23. बेसिक शिक्षा प्रणाली / वर्धा शिक्षा योजना:

  • जनक: महात्मा गाँधी (1937)
  • अन्य नाम: बुनियादी शिक्षा, नयी तालीम।
  • बालक को हस्तकौशल (Handicraft) आधारित शिक्षा देना।

पाठ्यक्रम:

  1. मूल शिल्प (हस्तकला):
  • (i) धातु के काम
  • (ii) लकड़ी के काम
  • (iii) मिट्टी के काम
  • (iv) गत्ते के काम
  • (v) कताई-बुनाई, कपड़े के काम
  1. बालकों को व्यवहारिक गणित सिखाया जाए।
  2. वाणिज्य पाठ्यक्रम पर बल।
  3. स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा पर बल।

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Topic: बेसिक शिक्षा (जारी) व दल-शिक्षण

बेसिक शिक्षा (जारी):

  • सामाजिक विज्ञान की जानकारी पर बल।
  • लड़कियों को गृह विज्ञान (Home Science) का ज्ञान अलग से दिया जाए।

24. दल-शिक्षण उपागम (Team Teaching):

  • प्रथम प्रयोग: हार्वर्ड विश्वविद्यालय (1955)।
  • दल-शिक्षण के अंतर्गत 'दल' शिक्षकों का बनता है (छात्रों का नहीं)।

दल-शिक्षण के प्रकार/नियम:

  1. एक ही विभाग के सभी शिक्षकों का दल।
  2. एक ही संस्था के विभिन्न शिक्षकों का दल।
  3. अलग-अलग संस्था के एक ही विभाग का दल।

सोपान / चरण:

  1. योजना बनाना (Planning)।
  2. व्यवस्था करना (Organizing)।
  3. मूल्यांकन करना (Evaluating)।

सिद्धांत: अधिगम का सिद्धांत।

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Topic: दल-शिक्षण (सिद्धांत व गुण)

सिद्धांत (जारी):

  • निरीक्षण का सिद्धांत।
  • तत्परता का सिद्धांत।
  • उत्तरदायित्व या जिम्मेदारी का सिद्धांत।
  • छात्रों की संख्या का सिद्धांत।
  • सामग्री चयन का सिद्धांत।
  • शिक्षण क्षमता का सिद्धांत।
  • विषयवस्तु की क्रमबद्धता का सिद्धांत।
  • अनुशासन का सिद्धांत।

गुण:

  • शिक्षकों की संख्यात्मक तथा गुणात्मक कमी को पूरा किया जा सकता है।
  • बालकों को विशिष्ट ज्ञान (Specialized knowledge) दिया जा सकता है।
  • अनुशासन बनाने में उपयोगी।
  • शिक्षकों की समय व शक्ति को बचाया जा सकता है।
  • शिक्षकों के मध्य अंतःसंबंध मजबूत हो जाते हैं।

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Topic: दल-शिक्षण (दोष) व पर्यवेक्षित अध्ययन विधि

दल-शिक्षण के दोष:

  • व्यवस्था में समय अधिक लगता है।
  • बड़े कमरों की आवश्यकता होती है।
  • सभी प्रकरण ऐसे नहीं पढ़ाए जा सकते।
  • एक साथ इतने शिक्षकों की व्यवस्था नहीं हो पाती है।

25. पर्यवेक्षित अध्ययन विधि (Supervised Study Method):

  • अन्य नाम: निर्देशित अध्ययन, निरीक्षित अध्ययन।
  • जनक: मेबल सिम्पसन / योकम (Yoakam)।
  • कालांश का समय सीमा: 60 मिनट।
  • इस विधि का प्रयोग बालकों के 'अवबोध स्तर' को ध्यान में रखकर किया जाता है।

सोपान / चरण:

  1. अध्ययन कार्य का निर्धारण करना (Assignment)।
  2. अध्ययन के लिए निर्देश देना (Instructions)।
  3. शिक्षक के द्वारा पर्यवेक्षण करना (Supervision)।
  4. श्यामपट्ट पर सार लिख देना / आवृत्ति कार्य देना।

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Topic: पर्यवेक्षित अध्ययन (गुण-दोष) व पर्यटन विधि

पर्यवेक्षित अध्ययन के गुण:

  • बालकों में स्वाध्याय (Self-study) की आदत विकसित होती है।
  • समस्या का समाधान बालक स्वयं ढूँढ़ता है।
  • सभी विषयों के लिए उपयोगी।
  • बालक में अवधान (Attention) की क्षमता में वृद्धि होती है।

दोष:

  • कुशाग्र बुद्धि वाले बालकों में धीमी गति से विकास होता है।
  • अभिप्रेरणा का अभाव।
  • व्यावहारिक ज्ञान में वृद्धि नहीं होती है।

26. पर्यटन विधि / भ्रमण विधि (Excursion Method):

  • इस विधि में बालकों को उसी वातावरण में ले जाया जाता है जो विषयवस्तु से जुड़ा हुआ हो।
  • इसमें शिक्षण विधि, सहायक सामग्री, तथा विषयवस्तु तीनों एक में ही समाहित होते हैं।
  • जनक: पेस्टालॉजी (Pestalozzi)।

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Topic: पर्यटन विधि (जारी...)

नोट:

  • इस विधि का सर्वप्रथम विचार 'रूसो' द्वारा दिया गया।
  • रविन्द्रनाथ टैगोर: "भ्रमण करते हुए सीखना मनोवैज्ञानिक विधि है।"

उपयोगिता / गुण:

  • बालक स्वयं सीखता है।
  • प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त होते हैं।
  • ज्ञान स्थायी होता है।
  • मनोवैज्ञानिक व बालकेन्द्रित विधि है।
  • बालकों में प्रबंधन (Management) की भावना का विकास होता है।
  • बालक सक्रिय होते हैं।
  • नेतृत्व भावना व राष्ट्र भावना का विकास।
  • प्रकृति के प्रति प्रेम भाव।
  • अवलोकन शक्ति का विकास।
  • जिज्ञासा व तर्क शक्ति का विकास।
  • आनंदमयी विधि है।

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Topic: पर्यटन विधि (दोष) व प्रश्नोत्तर विधि

पर्यटन विधि के दोष:

  • समय व धन अधिक लगता है।
  • दुर्घटना की संभावना अधिक।
  • मनोरंजन की भावना के कारण शैक्षिक उद्देश्य की प्राप्ति नहीं हो पाती।
  • पाठ्यक्रम पूरा नहीं हो पाता।
  • शिक्षण प्रक्रिया बाधित होती है।
  • शारीरिक रूप से अक्षम बालकों के लिए अनुपयोगी।

27. प्रश्नोत्तर विधि / सुकराती विधि (Question-Answer Method):

  • जनक: सुकरात (Socrates)।
  • प्रश्नोत्तर विधि हमेशा 'प्रविधि' रहेगी।
  • अभिक्रमित अनुदेशन उपागम इसी प्रणाली पर आधारित है।
  • पाल्कर: "शिक्षण सर्वाधिक प्रश्नों के माध्यम से कराया जाना चाहिए।"
  • कौलर: "प्रश्न आदतों व कौशल से ऊपर उठकर समस्त क्रियाओं की कुंजी हैं।"

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Topic: प्रश्नोत्तर विधि (सोपान व प्रश्न प्रकार)

सोपान / चरण:

  1. निरीक्षण (Observation)
  2. अनुभव (Experience)
  3. परीक्षण (Testing)

प्रश्नों के गुण:

  • प्रश्न तर्कपूर्ण होने चाहिए।
  • क्रमबद्धता होनी चाहिए।
  • लघु-पद होने चाहिए।
  • भाषा सरल होनी चाहिए।
  • स्तर के अनुकूल प्रश्न होने चाहिए।
  • स्पष्टता होनी चाहिए।
  • उद्देश्यपूर्ण व क्रियाशील होने चाहिए।

प्रश्नों के प्रकार:

  1. प्रस्तावना प्रश्न
  2. विकासात्मक प्रश्न
  3. समस्यात्मक प्रश्न
  4. बोधात्मक प्रश्न
  5. पुनरावृत्ति प्रश्न
  6. तुलनात्मक प्रश्न

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Topic: प्रश्नोत्तर विधि (गुण व दोष)

गुण:

  • ज्ञान में नवीनता आती है।
  • जिज्ञासा उत्पन्न होती है।
  • रुचियों का विकास होता है।
  • पाठ विस्तार होता है।
  • चिंतन व विचार शक्तियों का विकास।
  • नवीन विषय-वस्तु के साथ संबंध स्थापित करती है।

दोष:

  • पाठ्यक्रम क्रमबद्ध रूप से पूर्ण नहीं हो पाता।
  • समय अधिक लगता है।
  • शर्मीले बालकों के लिए अनुपयोगी।
  • अमनोवैज्ञानिक विधि है (कुछ अर्थों में)।
  • परंपरागत व प्राचीन विधि है।

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Topic: अभिक्रमित अनुदेशन उपागम (Programmed Instruction)

  • अनुदेशन: ज्ञान, निर्देश, सूचना।
  • अभिक्रमित: क्रमबद्धता, योजनाबद्ध।
  • यह एक मशीन आधारित शिक्षण है।
  • उदाहरण:
  • फ्रेम (प्रश्न) -> विषयवस्तु -> विद्यार्थी -> उत्तर
  • इतिहास:
  • विचार: सुकरात की प्रश्नोत्तर प्रणाली से।
  • प्रथम प्रयोग: सिडनी एल. प्रेसी (Sidney L. Pressey - 1920s)।
  • आधार: स्किनर (Skinner) की 'ऑपरेंट कंडीशनिंग थ्योरी' (क्रिया प्रसूत अनुबंधन)।
  • भारत में: 1963 (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)।

परिभाषा:

  • एविल: "यह अनुदेशन न केवल स्व-अध्याय की प्रक्रिया है, बल्कि शिक्षण प्रक्रिया की प्रविधि है।"

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Topic: अभिक्रमित अनुदेशन के प्रकार

प्रकार:

  1. रेखीय / बाह्य अभिक्रमित अनुदेशन (Linear): बी.एफ. स्किनर (Skinner)।
  2. शाखीय / आंतरिक अभिक्रमित अनुदेशन (Branching): नॉर्मन ए. क्राउडर (Crowder)।
  3. अवरोही / मैथेटिक्स अभिक्रमित अनुदेशन (Mathetics): थॉमस एफ. गिलबर्ट (Gilbert)।

1. रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन (Linear):

  • इसे 'बाह्य' भी कहते हैं।
  • इसका निर्माण अधिगम की प्रक्रिया को सरल रूप से ग्रहण करने के लिए किया गया।

पद / फ्रेम:

  1. प्रस्तावना पद (Introductory frame)
  2. शिक्षण पद (Teaching frame)
  3. अभ्यास पद (Practice frame)
  4. परीक्षण पद (Testing frame)

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Topic: रेखीय अभिक्रमित (तत्व व गुण-दोष)

तत्व:

  1. उद्दीपन (Stimulus)
  2. अनुक्रिया (Response)
  3. पुनर्बलन (Reinforcement)

विशेषताएँ:

  • पुनर्बलन से अभिप्रेरणा मिलती है।
  • व्यक्तिगत भिन्नता का ध्यान रखा जाता है।
  • फ्रेम का निर्माण मनोवैज्ञानिक तर्कों पर किया जाता है।
  • 'स्व-गति' से सीखने पर बल।

दोष:

  • प्रत्येक विषय वस्तु के लिए उपयोगी नहीं है।
  • गलत अनुक्रिया स्पष्ट नहीं हो पाती है।
  • केवल प्रतिभाशाली बालकों के लिए उपयोगी (या रटने पर बल)।
  • समय अधिक लगता है।

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Topic: शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन (Branching)

2. शाखीय / आंतरिक अभिक्रमित अनुदेशन:

  • जनक: नॉर्मन ए. क्राउडर।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लड़ाकू विमान ठीक करने के लिए इंजीनियरों को प्रशिक्षण देने हेतु प्रयोग किया गया।
  • छात्र जो करता है उसके व्यवहार का परिमार्जन (Correction) किया जाता है।

गुण:

  • अनुक्रिया स्पष्ट हो जाती है (गलती का कारण बताया जाता है)।
  • अभिप्रेरणा सामाजिक व मनोवैज्ञानिक होती है।
  • शिक्षण उद्देश्य प्राप्त करना सरल हो जाता है।

दोष:

  • यह प्रक्रिया मशीन पर कठिन होती है।
  • बड़ी कक्षाओं के लिए अधिक उपयोगी।
  • क्रमबद्ध करना कठिन।
  • फ्रेम में शिक्षण सामग्री अधिक होती है।

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Topic: अवरोही (मैथेटिक्स) अभिक्रमित अनुदेशन

3. अवरोही / मैथेटिक्स (Mathetics):

  • जनक: थॉमस एफ. गिलबर्ट।
  • इसका प्रयोग गणित की दक्षता (Mastery) मापने के लिए किया जाता है।
  • इसके अंतर्गत बालक विशिष्ट क्रियाएँ करता है।
  • क्रियाओं का क्रम अवरोही (Retrogressive - पीछे की ओर) होगा।
  • इसमें आगमन-निगमन दोनों विधियों का समावेश होता है।

सोपान / चरण:

  1. प्रदत्त संकलन / कार्य विश्लेषण।
  2. स्वामित्व / स्वयं का प्रस्तुतीकरण (Demonstration)।
  3. विशिष्टीकरण (Prompting)।
  4. अभ्यास / उन्मुक्ति (Release)।

गुण: शिक्षण रुचिकर, अशुद्धियाँ समाप्त, विषयवस्तु पर अधिकार।

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Topic: अभिक्रमित अनुदेशन के सिद्धांत व सामान्य गुण-दोष

सिद्धांत:

  1. पुनर्बलन का सिद्धांत।
  2. लघु-पदों (Small steps) का सिद्धांत।
  3. स्व-गति (Self-pacing) का सिद्धांत।
  4. स्व-अभिप्रेरणा का सिद्धांत।
  5. स्व-परीक्षण का सिद्धांत।
  6. सक्रियता का सिद्धांत।
  7. तुरंत प्रतिपुष्टि (Feedback) का सिद्धांत।

सामान्य गुण:

  • मनोवैज्ञानिक विधि है।
  • बालकेन्द्रित है (बालक सक्रिय रहता है)।
  • सीखा गया ज्ञान स्थायी होता है।

सामान्य दोष:

  • समय अधिक लगता है।
  • सभी स्तर पर प्रयोग नहीं होता।
  • केवल पठन कौशल का विकास अधिक होता है।
  • व्यावहारिक ज्ञान नगण्य रह जाता है।
  • बालक मशीन की तरह कार्य करता है।

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Topic: CAI व विश्लेषण विधि

अन्य प्रकार:

  1. कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन (CAI): जनक - लॉरेन्स स्टोलुरो / डेविस।
  2. अनुकूलित अभिक्रमित अनुदेशन: पास्क (Pask)।

28. विश्लेषण विधि (Analysis Method):

  • अर्थ: विषयवस्तु को छोटे-छोटे भागों में विभाजित करके (बांटकर) शिक्षण कराया जाता है।
  • बांटते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि जोड़ने पर वापस मूल विषयवस्तु पूर्ण रूप में आ जाए।
  • गणित (रेखागणित) शिक्षण के लिए सर्वाधिक उपयोगी।

शिक्षण सूत्र:

  • अज्ञात से ज्ञात की ओर।
  • निष्कर्ष से तथ्य / अनुमान की ओर।
  • प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर।

गुण:

  • क्रियाशील विधि है।
  • अन्वेषण (खोज) क्षमता विकसित होती है।
  • ज्ञान स्थायी होता है।

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Topic: विश्लेषण (दोष) व संश्लेषण विधि

विश्लेषण विधि के दोष:

  • केवल बड़े स्तर पर अधिक उपयोगी।
  • कठिन तथा लम्बी विधि।
  • पाठ्यक्रम समय पर पूर्ण नहीं होता।
  • समय अधिक लगता है।

29. संश्लेषण विधि (Synthesis Method):

  • अर्थ: छोटे-छोटे खंडों को एक साथ मिलाकर या जोड़कर शिक्षण कराया जाता है।
  • इस विधि का प्रयोग विश्लेषण विधि के बाद किया जाता है।
  • गणित शिक्षण की श्रेष्ठ विधि मानी जाती है (उत्तर की जांच आदि में)।

युंग का कथन: "विश्लेषण विधि में सूखी घास से तिनका बाहर निकाला जाता है, किन्तु संश्लेषण में घास से तिनका स्वयं बाहर आ जाता है।"

शिक्षण सूत्र:

  • ज्ञात से अज्ञात की ओर।
  • प्रत्यक्ष से प्रमाण की ओर।
  • तथ्य से निष्कर्ष की ओर। 

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Topic: संश्लेषण विधि (Synthesis Method)

संश्लेषण विधि के गुण:

  • यह मनोवैज्ञानिक विधि है।
  • यह विधि छोटी व सरल है।
  • समय कम लगता है।
  • शिक्षक को श्रम कम करना पड़ता है।
  • प्रारंभिक स्तर के लिए भी उपयोगी।
  • प्रतिभाशाली बालकों के लिए कम उपयोगी।

दोष:

  • रटने की प्रवृत्ति अधिक बढ़ती है।
  • नीरसता अधिक आती है।
  • बालक सीखे गए ज्ञान को जल्दी भूलते हैं।

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Topic: मस्तिष्क उद्वेलन विधि (Brainstorming)

30. मस्तिष्क उद्वेलन / विप्लव विधि:

  • जनक: एलेक्स एम. ऑसबर्न (Alex M. Osborn)
  • अन्य नाम: मानस मंथन।
  • बालकों के समक्ष जानबूझ कर एक ऐसी समस्या छोड़ दी जाती है, जिससे दिमाग में उथल-पुथल हो सके।
  • इस विधि का सर्वाधिक प्रयोग सामाजिक विज्ञान में किया जाता है।

अवस्थाएँ:

  1. उद्वेलन की अवस्था (Green Light Stage) - विचार आने दो।
  2. निर्णय की अवस्था (Red Light Stage) - विचारों का विश्लेषण।

सोपान / चरण:

  1. समस्या का आभास।
  2. समस्या पर चिंतन (विचारों की प्रवाहात्मकता)।
  3. समस्या का विश्लेषण / क्रियान्वयन।
  4. मूल्यांकन।

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Topic: मस्तिष्क उद्वेलन (विल्सन के चरण) व शिक्षण सूत्र

विल्सन के अनुसार चरण:

  1. परिचय
  2. तारतम्यता (हिमभंजक / Ice breaking)
  3. समस्या का परिभाषीकरण
  4. समस्या संकेन्द्रण
  5. मस्तिष्क विप्लव
  6. मूर्खतम विचार (Wildest ideas)
  7. मूल्यांकन

गुण व दोष: समस्या समाधान विधि के समान। यह रचनात्मक कार्यों पर बल देती है।

शिक्षण सूत्र (Teaching Maxims):

  • ज्ञात से अज्ञात की ओर
  • अनुभव से तर्क की ओर
  • सरल से कठिन की ओर
  • स्थूल से सूक्ष्म की ओर
  • विशिष्ट से सामान्य की ओर
  • पूर्ण से अंश की ओर
  • अनिश्चितता से निश्चितता की ओर
  • विश्लेषण से संश्लेषण की ओर
  • तार्किकता से मनोवैज्ञानिकता की ओर [नोट: सही क्रम 'मनोवैज्ञानिक से तार्किक' होता है, पर यहाँ हस्तलिखित में ऐसा ही है]
  • ज्ञानेन्द्रियों द्वारा शिक्षा
  • प्रकृति के द्वारा शिक्षा

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Topic: भाषा शिक्षण (Language Teaching)

  • व्युत्पत्ति: संस्कृत की 'भाष' धातु से निर्मित।
  • अर्थ: वाणी को व्यक्त करना।
  • डॉ. रविन्द्रनाथ श्रीवास्तव: "भाषा का व्यक्ति, समाज व राष्ट्र में महत्वपूर्ण स्थान है।"
  • कामता प्रसाद गुरु: "भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों तक भली-भांति पहुंचा सकता है..."

भाषा के दृष्टिकोण:

  1. भौतिक दृष्टिकोण: स्वर यंत्रों से ध्वनि-वर्ण-शब्द... का विकास।
  2. सामाजिक दृष्टिकोण: समाज के विकास के साथ-साथ भाषा का विकास।
  3. सांस्कृतिक दृष्टिकोण: संस्कृति के परिमार्जन से भाषा का विकास।

भाषा शिक्षण का महत्व:

  • मानव विकास की आधारशिला।
  • विचारों व भावों को अभिव्यक्त करने का माध्यम।
  • सामाजिक जीवन की बुनियाद।
  • इतिहास को सुरक्षित रखने में।
  • मानव की पहचान।

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Topic: भाषा के विभिन्न रूप

  1. मातृभाषा: माँ के मुख से निकली हुई भाषा। बालक का सर्वाधिक नियंत्रण इसी पर होता है।
  2. विद्यालय की भाषा: माध्यम भाषा (शिक्षण की भाषा)।
  3. राजभाषा: सरकारी कामकाज की भाषा (प्रान्त स्तर पर)।
  4. परिनिष्ठित भाषा (Standard Language): बोली से विकसित होकर बनी ऐसी भाषा जिसने सामाजिक व राजनैतिक रूप से पहचान बना ली हो (खड़ी बोली)।
  5. अपभाषा: परिनिष्ठित भाषा का बिगड़ा हुआ स्वरूप।
  6. उपभाषा: अनेक बोलियों का समूह।
  7. राष्ट्रभाषा: राष्ट्र के अधिकांश लोग बोलते व समझते हों।
  8. विशिष्ट भाषा: विशिष्ट लोगों (वकील, डॉक्टर) द्वारा प्रयुक्त भाषा।

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Topic: भाषा के रूप व हिंदी का विकास

  1. मूल भाषा: जिससे भाषा का जन्म हुआ हो।
  2. मिश्रित भाषा।
  3. गुप्त भाषा।
  4. कृत्रिम भाषा: वक्ता व श्रोता के अतिरिक्त कोई नहीं समझ सकता।
  5. साहित्यिक भाषा।
  6. जीवित व मृत भाषा।

भाषा विकास का क्रम - हिंदी:

  • संस्कृत (वैदिक -> लौकिक)
  • पाली
  • प्राकृत
  • अपभ्रंश
  • शौरसेनी
  • हिंदी

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • हिंदी का उद्भव विक्रम संवत 1050 (993 ई.) के आस-पास माना जाता है।
  • यह 'भारोपीय परिवार' की भाषा है।
  • भारत के लगभग 10 राज्यों में हिंदी बोली जाती है।
  • 'हिंदी' शब्द फारसी भाषा का है।

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Topic: भाषा का संवैधानिक स्वरूप

  • भाग: 17
  • अनुच्छेद: 343 से 351 तक।
  • अनुच्छेद 343 (1): संघ की राजभाषा हिंदी होगी तथा लिपि देवनागरी होगी।
  • अनुच्छेद 343 (2): हिंदी की सहायक राजभाषा अंग्रेजी होगी (प्रारंभ में 15 वर्ष के लिए)।
  • दिवस: 14 सितम्बर 1949 को हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया। (हिंदी दिवस)।
  • राजभाषा विभाग की स्थापना: 1975

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Topic: 8वीं अनुसूची व भाषा की विशेषताएँ

भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में 22 भाषाओं को दर्जा दिया गया है:

  1. असमिया, 2. उर्दू, 3. उड़िया, 4. कश्मीरी, 5. कन्नड़, 6. गुजराती, 7. कोंकणी, 8. डोगरी, 9. तमिल, 10. तेलुगु, 11. नेपाली, 12. पंजाबी, 13. बंगाली, 14. बोडो, 15. मणिपुरी, 16. मराठी, 17. मलयालम, 18. मैथिली, 19. संथाली, 20. संस्कृत, 21. सिंधी, 22. हिंदी।

भाषा की विशेषताएँ / अभिलक्षण:

  1. यादृच्छिकता (Arbitrariness): मानी गई या स्वीकृत भाषा।
  2. सृजनात्मकता: भाषा का सृजन होता है। किसी भी भाषा का कोई अंतिम वाक्य नहीं होता।
  3. द्वैधता / द्वयात्मकता: दो स्तर - (i) स्वनिम (ध्वनि), (ii) रूपिम (अर्थ)।
  4. अन्तरविनियमता: वक्ता व श्रोता का होना जरूरी है (भूमिका बदलना)।
  5. विस्थापन: भूत, वर्तमान, भविष्य तीनों की बात की जा सकती है।
  6. विविक्तता (Discreteness): छोटे-छोटे खंडों (वर्ण, शब्द) में विभाजित।

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Topic: भाषा की विशेषताएँ व अर्जन-अधिगम

विशेषताएँ (जारी):

  • अनुकरण ग्राह्यता: भाषा अनुकरण से सीखी जाती है।
  • सांस्कृतिक संचरण: पैतृक सम्पत्ति नहीं, अर्जित सम्पत्ति है।
  • भाषा एक सामाजिक प्रक्रिया है।
  • भाषा संयोगावस्था से वियोगावस्था की ओर चलती है।
  • प्रत्येक भाषा का भौगोलिक क्षेत्र होता है।

भाषा सीखने-सिखाने की दृष्टियाँ:

(i) भाषा अर्जन (Acquisition):

  • यह अवचेतन (Subconscious) प्रक्रिया है।
  • प्राकृतिक / स्वाभाविक है।
  • अनौपचारिक है (वातावरण से)।
  • बालक सक्रिय रहता है।

(ii) भाषा अधिगम (Learning):

  • यह चेतन (Conscious) प्रक्रिया है।
  • नियमबद्ध व सैद्धांतिक है।
  • औपचारिक है (विद्यालय/व्याकरण से)।
  • प्रयासपूर्ण है।

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Topic: भाषायी दृष्टिकोण (क्रेसन, चॉम्स्की, वाइगोत्सकी)

(iii) स्वनिम / प्राकृतिक दृष्टिकोण (Krashen):

  • स्टीफन क्रेसन के अनुसार 5 परिकल्पनाएं:
  1. अर्जन-अधिगम
  2. प्राकृतिक क्रम
  3. मॉनीटर (निगरानी)
  4. निवेश (Input)
  5. भावात्मक फिल्टर

(iv) चॉम्स्की का बहुभाषा सिद्धांत (Nativist):

  • बालक जन्म से ही एक 'भाषायी यंत्र' (LAD - Language Acquisition Device) लेकर आता है।
  • भाषा सीखने की क्षमता जन्मजात होती है।
  • सार्वभौमिक व्याकरण।

(v) वाइगोत्सकी का सामाजिक सांस्कृतिक सिद्धांत:

  • भाषा सामाजिक अंतःक्रिया (Social Interaction) से सीखी जाती है।
  • "विचार और भाषा अलग-अलग होते हैं, बाद में मिल जाते हैं।"

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Topic: वाइगोत्सकी के वाक व भाषा के रूप

वाइगोत्सकी के अनुसार भाषा के प्रकार (Speech):

  1. सामाजिक वाक (Social Speech): (2 वर्ष) जरूरत पूरी करने के लिए।
  2. निज वाक (Private Speech): (3 वर्ष) बालक स्वयं से बोलकर कार्य करता है (आत्म-नियमन)।
  3. आंतरिक मौन वाक (Silent Inner Speech): (7 वर्ष) मन में सोचना।

(vi) समग्र भाषा दृष्टिकोण (Whole Language): भाषा को टुकड़ों में न सिखाकर एक साथ (समग्र रूप में) सिखाया जाए।

भाषा के प्रकार:

  1. मौखिक भाषा:
  • मूल रूप, सरल रूप, प्राचीन रूप।
  • मूलभूत इकाई: ध्वनि।
  • अस्थायी होती है।
  1. लिखित भाषा:
  • गौण रूप, कठिन रूप, नवीन रूप।
  • मूलभूत इकाई: वर्ण।
  • स्थायी होती है।

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Topic: सांकेतिक भाषा व भाषायी कौशल (LSRW)

  1. सांकेतिक भाषा: संकेतों के माध्यम से। मूक-बधिरों के लिए। सबसे कठिन रूप।

भाषायी कौशलों का विकास (Language Skills):

  • मनोवैज्ञानिक क्रम: सुनना (L) -> बोलना (S) -> पढ़ना (R) -> लिखना (W)।
  • फ्रोबेल के अनुसार: सुनना -> बोलना -> पढ़ना -> लिखना।
  • मॉन्टेसरी के अनुसार: सुनना -> बोलना -> लिखना -> पढ़ना (L -> S -> W -> R)। उनका मानना था "लिखने से पहले पढ़ना सिखाना मुँह धोने से पहले नहाने के समान है।" (Note: Actually she said writing is easier than reading, text implies sequence change).
  • सरयू प्रसाद: पठन + लेखन साथ-साथ।

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Topic: कौशलों का वर्गीकरण व श्रवण कौशल

वर्गीकरण:

  1. ग्रहणात्मक कौशल (Receptive): सुनना, पढ़ना (अर्थ ग्रहण करना)।
  2. अभिव्यंजनात्मक कौशल (Expressive): बोलना, लिखना (विचार प्रकट करना)।
  • सबसे सरल कौशल: सुनना।
  • सबसे कठिन कौशल: लिखना।
  • सबसे महत्वपूर्ण (शैक्षिक दृष्टि से): पढ़ना।

1. श्रवण कौशल (Listening Skill):

  • यह सभी कौशलों का आधार है (प्रथम कौशल)।
  • यह व्यावहारिक व ग्रहणात्मक कौशल है।

श्रवण कौशल की शक्तियाँ:

  1. अंतर बोध शक्ति: समान उच्चारित शब्दों में अंतर कर पाना।
  2. धारण शक्ति: याद रखना।
  3. बोधन शक्ति: अर्थ को समझना।

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Topic: श्रवण कौशल (महत्व व सावधानियाँ)

महत्व:

  • सूक्ष्म ध्वनियों में अंतर पहचानना।
  • अध्ययन की आधारशिला।
  • व्यक्तित्व निर्माण व मौखिक अभिव्यक्ति में उपयोगी।
  • शब्द भंडार में वृद्धि।

ध्यान रखने योग्य बातें:

  • अर्थ ग्रहण करते हुए सुनना।
  • तार्किकता के साथ सुनना।
  • शांतचित्त होकर सुनना।
  • वक्ता के विचारों का आदर करना।

श्रवण के आधार:

  1. सामान्य श्रवण: (अनौपचारिक)
  2. चयनात्मक श्रवण: (काम की बात सुनना)

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Topic: श्रवण के प्रकार व विकास के माध्यम

प्रकार (विस्तृत):

  • पर्याप्त श्रवण, एकाग्र श्रवण, अवधानात्मक श्रवण, विश्लेषणात्मक श्रवण, रसास्वादन श्रवण।

श्रवण कौशल के दोष के कारण:

  • मौखिक कार्यों का अभाव।
  • कठोर नियंत्रण / अशांत वातावरण।
  • श्रवण इन्द्रियों का कमजोर होना।

विकास के माध्यम / विधियाँ:

  • सस्वर वाचन, प्रश्नोत्तर, कहानी कथन, श्रुतलेख (Dictation), भाषण, टेप रिकॉर्डर, भाषा प्रयोगशाला।

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Topic: मौखिक / वाचन कौशल (Speaking Skill)

2. मौखिक / कथन / वादन कौशल:

  • यह व्यावहारिक व प्रथम अभिव्यंजनात्मक कौशल है।
  • यह 'शब्द से अर्थ' की ओर चलता है (विचार -> शब्द)।

महत्व:

  • दैनिक जीवन व व्यावसायिक कार्यों में उपयोगी।
  • वार्तालाप का माध्यम।
  • भाव प्रदर्शन में उपयोगी।
  • पाठ में सजीवता लाना।
  • भाषा की शिक्षा इसी से प्रारंभ होती है।

विशेषताएँ:

  • स्वाभाविकता, स्पष्टता, शुद्धता, मधुरता, गतिशीलता।
  • सर्वमान्य भाषा का प्रयोग।

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Topic: मौखिक कौशल (क्रिया-कलाप) व पठन कौशल

शिक्षक सावधानियाँ:

  • स्वर यंत्रों का अभ्यास कराएं।
  • कठिनाई स्तर वाले बालकों को अलग से शिक्षा दें।

विकास के क्रिया-कलाप:

  • प्रश्नोत्तर, अंत्याक्षरी, वाद-विवाद, नाटक/अभिनय, कवि सम्मेलन, सस्वर वाचन।

3. पठन / वाचन कौशल (Reading Skill):

  • लिखे हुए को पढ़कर अर्थ ग्रहण करना।

सोपान:

  1. प्रत्यक्षीकरण (देखना/पहचानना)।
  2. अर्थ-ग्रहण।
  3. प्रयोग।

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Topic: वाचन के प्रकार (सस्वर वाचन)

वाचन के प्रकार:

  1. सस्वर वाचन (Loud Reading):
  • (i) व्यक्तिगत वाचन (एक छात्र द्वारा)।
  • (ii) सामूहिक / समवेत वाचन (पूरी कक्षा द्वारा)।
  1. मौन वाचन (Silent Reading):
  • (i) गंभीर / गहन वाचन।
  • (ii) द्रुत / त्वरित वाचन।

सस्वर वाचन:

  • यति-गति, लय के साथ किया जाने वाला वाचन।
  • पुस्तक बाएं हाथ में (45 डिग्री कोण, 12 इंच दूरी)।
  • गुण: शुद्ध उच्चारण, आत्मविश्वास, झिझक दूर करना, लिपि ज्ञान।

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Topic: मौन वाचन (Silent Reading)

मौन वाचन:

  • बिना होठ हिलाए मन ही मन पढ़ना।
  • बालक सर्वाधिक अर्थ ग्रहण इसी वाचन से करता है।
  • सर्वाधिक नीरसता इसी में आती है (छोटी कक्षाओं के लिए कम उपयोगी)।

गुण / महत्व:

  • गहन अध्ययन किया जा सकता है।
  • थकान कम होती है (ऊर्जा बचती है)।
  • स्वाध्याय (Self-study) की आदत का विकास।
  • कम समय में अधिक शिक्षण।
  • चिंतन-मनन शक्ति का विकास।

1. गंभीर मौन वाचन:

  • भाषा पर अधिकार, नवीन सूचना, केंद्रीय भाव की खोज के लिए।

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Topic: द्रुत वाचन, वाचन प्रारम्भ व त्रुटियाँ

2. द्रुत / त्वरित वाचन (Rapid Reading):

  • आनंद प्राप्ति के लिए।
  • सीखी हुई भाषा का अभ्यास।
  • साहित्य परिचय।

महत्वपूर्ण:

  • मौन वाचन किस कक्षा से प्रारंभ? कक्षा 3 से (सामान्यतः)। कक्षा 6 से (गंभीर रूप से)।

वाचन संबंधित त्रुटियाँ / बाधाएँ:

  • प्रयत्न लाघव (Shortcuts)।
  • क्षेत्रीयता का प्रभाव।
  • अशुद्ध उच्चारण।
  • अटक-अटक कर पढ़ना।
  • अंगुली रखकर पढ़ना।
  • वाचन मुद्रा सही न होना।
  • दृष्टि दोष।

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Topic: वाचन की विधियाँ व लेखन कौशल

वाचन की प्रमुख विधियाँ:

  1. अक्षर बोध विधि: (वर्णमाला विधि)
  2. ध्वनि साम्य विधि: (समान ध्वनि वाले शब्द)
  3. अनु-ध्वनि विधि: (Echo reading)
  4. देखो और कहो विधि: (शब्द साहचर्य / चित्र विधि)
  5. भाषा प्रयोगशाला विधि।
  6. संप्रेषण वाचन विधि।
  7. समवेत / संगति विधि: (समूह में)
  8. वर्ण पठन विधि।
  9. समग्र भाषा विधि।

4. लेखन कौशल (Writing Skill):

  • यह 'अर्थ से शब्द' की ओर चलता है (विचार -> लिखित रूप)।
  • सबसे कठिन कौशल है।
  • सबसे अंत में विकसित होने वाला कौशल है।

महत्व:

  • विचारों को सुरक्षित रखने में उपयोगी।
  • दैनिक जीवन में उपयोगी।
  • सबूत के रूप में उपयोगी।
  • सरकारी काम-काज में उपयोगी।
  • संस्कृति व धरोहर को सुरक्षित रखने में।
  • साहित्य को सुरक्षित रखने में।

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Topic: लेखन के तत्व व विधियाँ

लेखन के तत्व (Elements):

  1. सुलेख (Calligraphy): सुंदर लिखना।
  2. अनुलेख (Transcription): देखकर लिखना (नकल करना)।
  3. श्रुतलेख (Dictation): सुनकर लिखना (वर्तनी शुद्धि के लिए)।

लेखन की विधियाँ:

  1. मॉन्टेसरी विधि: (लिखने से पहले पढ़ना नहीं, बल्कि इंद्रियों का प्रयोग)।
  2. खंडशः लेखन विधि: (टुकड़ों में लिखना)।
  3. रूपरेखा / अनुकरण विधि: (बिंदुओं को मिलाना)।
  4. स्वतंत्र अनुकरण विधि।
  5. पेस्टालॉजी विधि: (सरल से कठिन, टुकड़ों को जोड़ना)।
  6. जैकटाक विधि: (स्वयं सुधार)।
  7. रेखा अनुकरण विधि।
  8. बिंदु अनुकरण विधि।
  9. प्रतिक्रिया आधारित विधि।
  10. नमूना विधि।

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Topic: गद्य व पद्य शिक्षण

गद्य शिक्षण (Prose Teaching):

  • गद्य शब्द संस्कृत की 'गद्' धातु से बना है।
  • अर्थ: स्पष्ट कहना।
  • छंद, ताल, लय रहित रचना 'गद्य' कहलाती है।
  • गद्य शिक्षण को 'साहित्यकारों की कसौटी' कहा जाता है।

गद्य शिक्षण के उद्देश्य / महत्व:

  • बालकों को व्याकरण सम्मत भाषा का प्रयोग सिखाना।
  • शब्द भंडार में सर्वाधिक वृद्धि।
  • ज्ञानार्जन का सशक्त माध्यम।
  • भावात्मक पक्ष का विकास।
  • शुद्ध उच्चारण व पठन कौशल का विकास।
  • लिपि व लेखन शैली का ज्ञान।

प्रमुख विधियाँ:

  • अर्थ बोध विधि (शब्दार्थ)।
  • व्याख्यान विधि।
  • प्रश्नोत्तर विधि।
  • संयुक्त प्रणाली।

पद्य शिक्षण / कविता शिक्षण (Poetry Teaching):

  • स्वर, लय, गति, ताल, छंद, अलंकार, आरोह-अवरोह आदि की भूमिका अधिक होती है।

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Topic: पद्य शिक्षण (सोपान व प्रकार)

पद्य शिक्षण के सोपान / चरण:

  1. अर्थानुभूति (Arth-anubhuti) - प्रारंभिक।
  2. सौन्दर्यानुभूति (Saundarya-anubhuti)।
  3. भावानुभूति (Bhav-anubhuti)।
  4. रसानुभूति (Rasa-anubhuti) - सर्वोच्च।

पद्य शिक्षण के प्रकार:

  1. बोध पाठ: विषय वस्तु को लय-ताल में पढ़ते हुए उसका अर्थ भी ग्रहण किया जाता है। (अर्थानुभूति + भावानुभूति)।
  2. रस पाठ: विषय वस्तु से आनंद की प्राप्ति होती है, अर्थ ग्रहण मुख्य नहीं होता। (सौन्दर्यानुभूति + रसानुभूति)।

पद्य शिक्षण के पक्ष:

  • कला पक्ष (बाह्य सौंदर्य)।
  • भाव पक्ष (आंतरिक सौंदर्य)।

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Topic: कविता शिक्षण विधियाँ व कहानी शिक्षण

कविता / पद्य शिक्षण की प्रमुख विधियाँ:

  • गीत विधि (छोटे स्तर पर)।
  • अभिनय विधि।
  • अर्थ-बोध विधि।
  • व्याख्यान विधि (बड़े स्तर पर)।
  • खंडान्वय विधि (प्रश्नोत्तर)।
  • व्यास विधि (विस्तृत व्याख्या)।
  • तुलना विधि।
  • समीक्षा प्रणाली।

उद्देश्य: रसानुभूति कराना, कल्पना शक्ति का विकास, नैतिक मूल्यों का विकास।

कहानी शिक्षण (Story Teaching):

  • लेखक द्वारा किसी घटना को भाव से जोड़कर स्पष्ट रूप से उजागर करना।

उद्देश्य / महत्व:

  • बालकों में जिज्ञासा उत्पन्न होती है।
  • कठिन विषय को सरल बनाया जा सकता है।
  • सामाजिक संस्कृति का विकास।
  • बालकों की सर्वाधिक रुचि।
  • कल्पना शक्ति का विकास।

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Topic: कहानी, नाटक व व्याकरण शिक्षण

कहानी शिक्षण की विधियाँ:

  • चित्र प्रदर्शन विधि।
  • अधूरी कहानी पूर्ति विधि।
  • कथा-कथन विधि।
  • वाचन विधि।

एकांकी / नाटक शिक्षण (Drama Teaching):

  • किसी बड़ी घटना का छोटा रूप 'एकांकी' कहलाता है।
  • इससे बालक में अभिव्यक्ति क्षमता का विकास होता है।
  • अभिनय कला में प्रवीणता आती है।
  • 'मनोरंजन से ज्ञानार्जन' होता है।
  • भावात्मक व क्रियात्मक विकास।

विधियाँ:

  • कक्षा-अभिनय विधि (सर्वश्रेष्ठ)।
  • रंगमंच विधि (खर्चीली)।
  • अर्थ ग्रहण विधि।

व्याकरण शिक्षण (Grammar Teaching):

  • बिना व्याकरण के भाषा का कोई अस्तित्व नहीं है।
  • व्याकरण भाषा का 'अनुशासन' है।
  • व्याकरण भाषा में त्रुटियाँ आने को रोकती है।

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Topic: व्याकरण (विधियाँ) व रचना शिक्षण

व्याकरण शिक्षण के उद्देश्य:

  • वर्ण, शब्द, ध्वनि का ज्ञान कराना।
  • शुद्ध भाषा का प्रयोग करना सिखाना।
  • भाषा की मानकता का ज्ञान कराना।
  • भाषा पर अधिकार करना।

प्रमुख विधियाँ:

  • आगमन विधि (सर्वश्रेष्ठ)।
  • निगमन विधि।
  • समवाय / सहयोग विधि।
  • भाषा संसर्ग विधि (व्यावहारिक ज्ञान)।
  • खेल विधि।
  • सूत्र विधि।
  • पाठ्यपुस्तक विधि।

रचना शिक्षण (Composition Teaching):

  • भावों या विचारों की कलात्मक अभिव्यक्ति रचना कहलाती है।
  • रचना के प्रकार:
  1. मौखिक रचना।
  2. लिखित रचना।

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Topic: रचना शिक्षण (सोपान व विधियाँ) व पाठ्यपुस्तक

रचना शिक्षण के सोपान:

  1. प्रारंभिक सोपान।
  2. मध्य सोपान।
  3. उत्तर सोपान।

रचना शिक्षण की विधियाँ:

  • प्रश्नोत्तर विधि, चित्र वर्णन विधि, रूपरेखा विधि, मंत्रणा विधि, स्वाध्याय विधि, उद्बोधन विधि, भाषा यंत्र विधि।

पाठ्यपुस्तक (Textbook):

  • 'Book' शब्द की उत्पत्ति जर्मन भाषा के 'Beek' (बिक) शब्द से हुई जिसका अर्थ है 'वृक्ष' या 'वृक्ष की छाल'।
  • ग्रंथ शब्द का अर्थ: गूंथना।

पुस्तकों के प्रकार:

  1. सूक्ष्म अध्ययनार्थ पुस्तकें: (Textbooks) - गहन अध्ययन के लिए।
  2. विस्तृत अध्ययनार्थ पुस्तकें: (Supplementary readers) - द्रुत वाचन के लिए।

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Topic: पाठ्यपुस्तक की विशेषताएँ

(i) आंतरिक विशेषताएँ (गुणात्मक):

  • रोचकता।
  • विविधता।
  • मनोवैज्ञानिक शैली।
  • उद्देश्यपूर्णता।
  • जीवन से संबंधित।
  • मौलिकता।
  • शुद्धता व स्पष्टता।
  • उपयुक्त शब्दावली (पुस्तक में 15 से 20% नए शब्द होने चाहिए)।

(ii) बाह्य विशेषताएँ (रूपात्मक):

  • नाम।
  • कवर (आवरण)।
  • सिलाई (Binding)।
  • मुद्रण (Printing)।
  • कागज (Paper)।
  • मूल्य (Price) - उचित होना चाहिए।
  • आकार।
  • चित्र।

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Topic: पाठ्यपुस्तक महत्व व मीडिया

पाठ्यपुस्तक के महत्व:

  • शिक्षण में क्रमबद्धता आती है।
  • शिक्षण में नियमितता आती है।
  • पुनरावृत्ति के अवसर मिलते हैं।
  • कम समय में अधिक जानकारी।
  • शिक्षक पूर्व में योजना बना सकते हैं।

बहु-माध्यम (Multi-media):

  1. प्रिंट मीडिया: अखबार, किताबें, शब्दकोश।
  2. डिजिटल मीडिया: इंटरनेट, कंप्यूटर।
  3. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया: रेडियो, टेलीविजन, प्रोजेक्टर।
  4. CGI: कंप्यूटर जनरेटेड इमेजरी।

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Topic: भाषा शिक्षण की चुनौतियाँ

  • अभिरुचि का अभाव।
  • पाठ्यक्रम की नीरसता / अभाव।
  • बालकों का नकारात्मक दृष्टिकोण।
  • प्रशिक्षित अध्यापकों का अभाव।
  • व्याकरण का जटिल रूप।
  • उचित शिक्षण विधियों का अभाव।
  • प्रशासन / सरकार की उदासीनता।

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Topic: मापन एवं मूल्यांकन (Measurement & Evaluation)

मापन (Measurement):

  • यह संख्यात्मक (Quantitative) होता है।
  • जैसे - 80/100 अंक।

मूल्यांकन (Evaluation):

  • यह संख्यात्मक + गुणात्मक (Quantitative + Qualitative) होता है।
  • जैसे - 80 अंक + "प्रथम श्रेणी" (गुण)।

अंतर:

  • मापन: मात्रात्मक, संकुचित क्षेत्र, समय कम, एकपक्षीय।
  • मूल्यांकन: गुणात्मक+मात्रात्मक, व्यापक क्षेत्र, समय अधिक, बहुपक्षीय।
  • मापन मूल्यांकन का एक अंग है।

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Topic: मूल्यांकन की अवधारणा (Bloom)

नवीन सम्प्रत्यय:

  • त्रिध्रुवीय प्रक्रिया (Triangle):
  1. शिक्षण उद्देश्य (Objectives)
  2. अधिगम अनुभव (Learning Experiences)
  3. मूल्यांकन (Evaluation)

ब्लूम की अवधारणा:

  • उद्देश्य -> अधिगम अनुभव -> मूल्यांकन।
  • शिक्षण प्रक्रिया के अंग: उद्देश्य, शिक्षण विधियाँ, मूल्यांकन।

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Topic: अच्छे मूल्यांकन की विशेषताएँ

  1. वस्तुनिष्ठता (Objectivity): जब किसी परीक्षण पर परीक्षक के व्यक्तिगत विचारों/पूर्वाग्रह का प्रभाव न पड़े। (प्रश्नों का उत्तर निश्चित हो)।
  2. विश्वसनीयता (Reliability): अंकों में स्थिरता। एक ही कॉपी को बार-बार जांचने पर भी अंक समान रहें।
  3. वैधता (Validity): जिस उद्देश्य के लिए परीक्षण बनाया गया है, वह उसी की पूर्ति करे। (यह अनिवार्य गुण है)।
  4. व्यापकता (Comprehensiveness): संपूर्ण पाठ्यक्रम से प्रश्न हों।
  5. विभेदकारिता (Discrimination): होशियार और कमजोर छात्रों में अंतर स्पष्ट कर सके।

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Topic: मूल्यांकन की विशेषताएँ व उद्देश्य

विशेषताएँ (जारी):

  • मानकता (Norms)।
  • व्यावहारिकता / सुगमता (Utility)।
  • स्पष्टता।

मूल्यांकन के उद्देश्य / आवश्यकता:

  • निदान करना (समस्या का पता लगाना)।
  • उपचार करना (समस्या दूर करना)।
  • अधिगम स्तर का पता लगाना।
  • निर्देश व परामर्श देना।
  • भविष्यवाणी करना।
  • अभिप्रेरणा देना।

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Topic: मूल्यांकन की उपयोगिता

  • बालकों का वर्गीकरण करना।
  • तुलना करना।
  • कक्षा उन्नति (Promotion) करना।
  • प्रमाण पत्र देना।
  • शिक्षक के लिए: शिक्षण विधियों में सुधार, पाठ्यक्रम में बदलाव।
  • बालक के लिए: अपनी कमजोरी व अच्छाई का ज्ञान।

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Topic: उपयोगिता (जारी) व मूल्यांकन की प्रकृति

  • अभिभावक के लिए: बालक के भविष्य की योजना।
  • समाज के लिए: संस्थान की गुणवत्ता का ज्ञान।

मूल्यांकन की प्रकृति:

  • यह उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है।
  • सामाजिक प्रक्रिया है।
  • निर्णयात्मक प्रक्रिया है।
  • सतत (Continuous) चलने वाली प्रक्रिया है।
  • इसमें व्यवहारगत परिवर्तनों का संकलन किया जाता है।

मापन के तत्व (Elements of Measurement):

  1. विषयी (Subject) - जिसका मापन हो।
  2. प्रतीक (Symbol) - अंक आदि।
  3. नियम / मान्यता (Rules).

Page 98

Topic: मापन के तत्व व प्रकार

तत्व (विवरण):

  • विषयी: गुणों की पहचान करना (जैसे- लंबाई)।
  • प्रतीक: मात्रांकन करना (जैसे- 5 फीट)।
  • नियम: निश्चित मात्रक (इंच, फीट)।

मापन के प्रकार:

  1. मात्रात्मक / भौतिक मापन: (Physical) - निरपेक्ष शून्य होता है (Absolute zero)। स्थिर होता है। वस्तुनिष्ठ होता है।
  2. गुणात्मक / मानसिक मापन: (Mental) - सापेक्ष होता है। शून्य बिंदु नहीं होता। परिवर्तनशील होता है। आत्मनिष्ठता की संभावना।

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Topic: मापन के चर व स्तर

चर (Variables):

  • गुणात्मक चर (गुणों के आधार पर)।
  • मात्रात्मक चर (संख्या के आधार पर)।

मापन के स्तर (Scales of Measurement - Stevens):

  1. नामित मापन (Nominal): गुणों/नाम के आधार पर वर्गीकरण। (सबसे कम परिमार्जित)। जैसे- पुरुष/महिला।
  2. क्रमित मापन (Ordinal): क्रम या रैंक देना। (नामित से श्रेष्ठ)। जैसे- प्रथम, द्वितीय, श्रेष्ठ, मध्यम।
  3. आंतरित मापन (Interval): अंतराल समान हो, शून्य वास्तविक नहीं होता। जैसे- ग्रेडिंग, थर्मामीटर।

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Topic: मापन के स्तर (Ratio) व मूल्यांकन प्रविधियाँ

  1. आनुपातिक मापन (Ratio): इसमें परम शून्य (Absolute Zero) होता है। सबसे श्रेष्ठ व वैज्ञानिक मापन। (तुलनात्मक अध्ययन)।

मापन-मूल्यांकन की प्रविधियाँ:

(A) गुणात्मक प्रविधियाँ (Qualitative Techniques):

  1. संचय अभिलेख (Cumulative Record): बालक का संपूर्ण इतिहास/रिकॉर्ड।
  2. आकस्मिक निरीक्षण अभिलेख (Anecdotal Record): किसी विशेष घटना का वर्णन (घटना वृत्त)।
  3. पोर्टफोलियो: निश्चित समय में प्राप्त उपलब्धियों का संग्रह (क्रमिक विकास)।
  4. आत्म प्रतिवेदन (Self-report): स्वयं के बारे में सूचना देना।
  5. अभिवृत्ति मापनी (Attitude Scale)।
  6. समाजमिति विधि (Sociometry): (मोरेनो) - सामाजिक संबंधों का मापन।
  7. साक्षात्कार (Interview)।
  8. प्रश्नावली / जाँच सूची (Checklist)।
  9. रेटिंग स्केल।

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Topic: मूल्यांकन की प्रविधियाँ (जारी) व परीक्षा के प्रकार

(A) गुणात्मक प्रविधियाँ (जारी):

6. अभिवृत्ति मापनी: (दृष्टिकोण - सकारात्मक/नकारात्मक)।

7. समाजमिति विधि: (मोरेनो) - शील गुणों के आधार पर चुनाव की एक प्रक्रिया है।

8. साक्षात्कार (Interview)।

9. प्रश्नावली विधि (Questionnaire)।

10. व्यक्ति इतिहास (Case Study)।

11. जाँच सूची (Checklist)।

12. रेटिंग स्केल (Rating Scale)।

(B) मात्रात्मक विधियाँ / परीक्षा (Exam):

1. मौखिक परीक्षा (Oral Exam):

  • बिना पेपर-पेंसिल से ली गई परीक्षा।
  • गुण:
  • तीनों पक्षों का मूल्यांकन।
  • गोपनीयता रखी जा सकती है।
  • व्यक्तिगत होती है।
  • जैसे - पैनल चर्चा, साक्षात्कार, वाद-विवाद, नाटक आदि।

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Topic: मौखिक परीक्षा (दोष) व लिखित परीक्षा

मौखिक परीक्षा के दोष:

  • लेखन कौशल का विकास नहीं होता है।
  • भाषा शुद्धि नहीं हो पाती है।
  • पूर्वाग्रह का प्रभाव पड़ता है।
  • पक्षपात की संभावना होती है।
  • शर्मीले बालकों के लिए उपयोगी नहीं है।

2. लिखित परीक्षा (Written Exam):

(क) बंद अंत (Close Ended):

  • वस्तुनिष्ठ (Objective), मिलान-चिन्ह, रिक्त स्थान, सत्य-असत्य।
  • गुण: पक्षपात विहीन परीक्षा, जाँच कार्य सरल, विश्वसनीयता, वैधता, व्यापकता।
  • दोष: नकल की संभावना अधिक, प्रश्न पत्र निर्माण करना कठिन, लेखन क्षमता/भाषा शुद्धि का विकास नहीं होता, समझने पर बल देती है रटने पर नहीं (यहाँ 'रटने पर नहीं' लिखा है, लेकिन प्रायः वस्तुनिष्ठ में रटने की प्रवृत्ति भी हो सकती है)।

(ख) मुक्त अंत (Open Ended):

  • अति लघूत्तरात्मक (15-25 शब्द), लघूत्तरात्मक (35-50 शब्द), निबंधात्मक (100+ शब्द)।
  • गुण: व्यक्ति विचारों की अभिव्यक्ति दे सकता है, लेखन क्षमता का विकास, भाषा शुद्धि, अभिरुचि का ज्ञान स्पष्ट होता है।
  • दोष: पक्षपात की संभावना, विश्वसनीयता/वैधता की कमी, रटने पर बल, जाँच कार्य कठिन।

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Topic: प्रायोगिक परीक्षा

3. प्रायोगिक परीक्षा (Practical Exam):

  • करके सीखने पर आधारित।
  • गुण:
  • प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त होते हैं।
  • ज्ञान स्थायी होता है।
  • अध्ययन की आदत विकसित होती है।
  • खोज प्रवृत्ति का विकास होता है।
  • दोष:
  • विद्यालय संसाधनों का अभाव।
  • प्रशिक्षित अध्यापक का अभाव।
  • दुर्घटना की संभावना।
  • समय अधिक लगता है।

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Topic: सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (CCE)

Topic-4: सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (CCE):

  • मुख्य उद्देश्य: बालकों को परीक्षा के भय से मुक्त करना।

इतिहास:

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 1986: दो प्रकार के मूल्यांकन की चर्चा (रचनात्मक व विकासात्मक)।
  • NCF - 2005: मूल्यांकन में 'दो शब्द' जोड़ दिए -> सतत + व्यापक।
  • घोषणा: भारत मानव संसाधन मंत्रालय (MHRD/शिक्षा मंत्रालय) + केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने मिलकर 20 सितम्बर 2009 को इसके प्रारूप की घोषणा की।
  • स्थापना: इन दोनों संस्थाओं ने मिलकर 6 अक्टूबर 2009 को गुजरात के पंचमुला में CCE के प्रथम प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की।

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Topic: CCE का क्रियान्वयन (भारत व राजस्थान)

भारत में:

  • सत्र 2009-10: CBSE द्वारा कक्षा 9 में CCE लागू।
  • सत्र 2010-11: CBSE द्वारा कक्षा 10 तक CCE लागू।
  • 1 अप्रैल 2010: संपूर्ण भारत में CCE लागू (RTE के तहत)।

राजस्थान में CCE:

  • राजस्थान में CCE के लिए चलाई गई योजना: पायलट योजना
  • संस्थाएँ: 1. यूनिसेफ, 2. बोध शिक्षा समिति, 3. प्रा. शिक्षा परिषद।
  • समय: 2010-11.
  • चयन: 60 स्कूलों का चयन (अलवर - 40, जयपुर - 20)।
  • कक्षा 1-5 में CCE को चलाया गया। (2010 में ही लागू)।
  • राजस्थान में CCE 6 चरणों में लागू हुआ।

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Topic: राजस्थान में CCE व अर्थ

  • अंतिम चरण: 2015-16 (संपूर्ण राजस्थान में लागू)।
  • राजस्थान में CCE आया: 2010।
  • राजस्थान में CCE प्रशिक्षण केन्द्र: उदयपुर
  • राजस्थान के अलवर तथा जयपुर जिलों में CCE पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म का निर्माण किया गया।

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का अर्थ:

  • सतत (Continuous): ऐसा मूल्यांकन जो निरन्तर लिया जाए।
  • व्यापक (Comprehensive): दो क्रियाएं:
  1. शैक्षिक गतिविधियाँ (Scholastic): परीक्षा, पाठ्यक्रम, ज्ञान का विकास।
  2. सह-शैक्षिक गतिविधियाँ (Co-scholastic): कौशलों का विकास (जीवन कौशल, सामाजिक, मानसिक, स्वास्थ्य, कार्यानुभव)।

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Topic: एक सत्र में CCE का क्रियान्वयन

एक सत्र (One Session):

  • प्रथम अवधि (Term 1) - 50%:
  • I. रचनात्मक मूल्यांकन प्रथम - FA1 (10%)
  • II. रचनात्मक मूल्यांकन द्वितीय - FA2 (10%)
  • III. योगात्मक मूल्यांकन प्रथम - SA1 (30%)
  • द्वितीय अवधि (Term 2) - 50%:
  • I. रचनात्मक मूल्यांकन तृतीय - FA3 (10%)
  • II. रचनात्मक मूल्यांकन चतुर्थ - FA4 (10%)
  • III. योगात्मक मूल्यांकन द्वितीय - SA2 (30%)
  • कुल अनुपात:
  • रचनात्मक (FA) : योगात्मक (SA)
  • 40% : 60%
  • 2 : 3

(Note: FA = Formative Assessment, SA = Summative Assessment)

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Topic: ग्रेडिंग प्रणाली

राजस्थान के सन्दर्भ में:

(i) आधार रेखा मूल्यांकन, (ii) रचनात्मक, (iii) योगात्मक।

ग्रेडिंग प्रणाली (CBSE/General):

  • 91 - 100 -> A1 (A+)
  • 81 - 90 -> A2 (A)
  • 71 - 80 -> B1 (B+)
  • 61 - 70 -> B2 (B)
  • 51 - 60 -> C1 (C+)
  • 41 - 50 -> C2 (C)
  • 33 - 40 -> D
  • 20 - 32 -> E1
  • 20 से कम -> E2

राजस्थान के सन्दर्भ में (SIQE/CCE):

  • 1-5 तक: सामान्य ग्रेडिंग प्रणाली।
  • 6-8 तक: 3 ग्रेड -
  • A (A+) -> अपेक्षित स्तर की समझ (स्वतंत्र रूप से कार्य)।
  • B -> मध्यम स्तर की समझ (शिक्षक की सहायता से)।
  • C -> प्रारम्भिक स्तर की समझ (विशेष सहायता की आवश्यकता)।

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Topic: CCE के उद्देश्य

1. सतत मूल्यांकन के उद्देश्य:

  • उपलब्धि स्तर की जाँच।
  • निदान करना।
  • उपचार करना।
  • निर्देश व परामर्श देना।
  • भविष्यवाणी करना।
  • बालकों का वर्गीकरण करना।

2. व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य:

  • बालक की सर्वांगीण प्रगति करना।
  • कक्षा उन्नति करना।
  • परिणाम पत्र देना।

विद्यालय स्तर पर CCE गतिविधियाँ:

  • प्रोजेक्ट कार्य, पेपर पेंसिल वर्क, प्रतियोगिता, अवलोकन द्वारा।

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Topic: उपचारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching)

Topic-5: उपचारात्मक शिक्षण:

  • उपचार शब्द: औषधि शास्त्र से लिया गया -> अर्थ: दोष दूर करना।
  • शिक्षा सम्बन्धी दोष को दूर करना उपचारात्मक शिक्षण है।
  • निदान (Diagnosis): समस्या के कारणों का पता लगाना (नैदानिक परीक्षण)।
  • उपचार (Remedy): समस्या के कारणों को दूर करना (उपचारात्मक शिक्षण)।

Note: उपचारात्मक शिक्षण, निदानात्मक परीक्षण के बाद की प्रक्रिया है।

सोपान / चरण:

  1. शिक्षण (Teaching)
  2. अभ्यास कार्य
  3. परीक्षण (Test) -> समस्या का ज्ञान
  4. निदानात्मक परीक्षण -> समस्या के कारणों का पता लगाना
  5. उपचारात्मक शिक्षण -> समस्या को दूर करना

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Topic: उपचारात्मक शिक्षण के प्रकार व अभ्यास माला

प्रकार:

  1. व्यक्तिगत: एक या एक से अधिक बालकों की समस्या अलग-अलग हो।
  2. सामूहिक: एक से अधिक बालकों की समस्या एक ही हो।
  3. विश्लेषणात्मक: ऐसी समस्या जो गत कक्षा की न होकर वर्तमान अधिगम पर आधारित हो।

अभ्यास माला (Practice Set) के चरण:

  1. त्रुटियों का विश्लेषण करना।
  2. प्रत्येक त्रुटि की अलग-अलग अभ्यास माला का निर्माण।
  3. विविध प्रकार के प्रश्न होंगे।
  4. निर्माण शिक्षण सूत्रों के आधार पर होगा।
  5. अभ्यास माला परिवर्तनशील होती है।

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Topic: उपचारात्मक शिक्षण के उद्देश्य

  • अधिगम सम्बन्धी त्रुटियों को दूर करना।
  • ज्ञान सम्बन्धी त्रुटियों को दूर करना।
  • सर्वांगीण विकास करना।
  • बालकों में आत्मविश्वास की वृद्धि करना।
  • अपराधी प्रवृत्ति को दूर करना।
  • समय व शक्ति को बचाना।
  • बालकों में प्रतिस्पर्धा का भाव विकसित करना।
  • मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर शिक्षण कराना।
  • हकलाने व तुतलाने वाले बालकों के लिए अधिक उपयोगी।
  • हीन-भावना को दूर करना।
  • शिक्षक सकारात्मक व सक्रिय रहता है।

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Topic: उपचारात्मक शिक्षण (ध्यान रखने योग्य बातें)

ध्यान रखने योग्य बातें:

  • शिक्षण कार्य बालकों के स्तर से प्रारम्भ होना चाहिए।
  • प्रगति की सूचना हर हफ्ते दी जानी चाहिए।
  • मूल्यांकन हमेशा सतत (निरन्तर) होना चाहिए।
  • शिक्षक निदान में अनुभवी होना चाहिए।
  • समय-समय पर बालकों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
  • हीनभावना का विकास नहीं होना चाहिए।

विद्यालय स्तर पर क्रिया-कलाप:

  • समूह शिक्षण, व्यक्तिगत शिक्षण, वाद-विवाद, गोष्ठी, विचार-विमर्श, सांस्कृतिक कार्य, अभ्यास कार्य, समूह चर्चा, प्रोजेक्ट कार्य, गृहकार्य।

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Topic: उपलब्धि परीक्षण (Achievement Test)

Topic-6: उपलब्धि परीक्षण:

  • अन्य नाम: निष्पत्ति परीक्षण, ज्ञानार्जन परीक्षण।
  • अर्थ: जब कोई बालक अपनी योग्यता के अनुसार किसी एक उचित परिणाम को प्राप्त करता है, उसी उचित परिणाम को उपलब्धि कहते हैं।
  • एक निश्चित समय में बालक द्वारा प्राप्त ज्ञान तथा उसके कौशल की योग्यता को जाँचना उपलब्धि परीक्षण कहलाता है।

सोपान / चरण / पद:

  1. योजना का निर्माण करना।
  2. योजना की तैयारी करना (Blue print)।
  3. परीक्षण का प्रशासन / अंतिम स्वरूप (Pilot Study) -> (Pre try-out, Actual try-out)।

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Topic: उपलब्धि परीक्षण (सोपान व प्रकार)

(सोपान जारी):

4. परीक्षण का फलांकन / अंकन करना (Scoring)।

5. परीक्षण का मूल्यांकन।

उपलब्धि परीक्षण के प्रकार:

(A) रचना के आधार पर:

  1. प्रमापीकृत / मानकीकृत (Standardized):
  • निर्माण विशेषज्ञों द्वारा।
  • क्षेत्र वृहद होता है।
  • अधिक विश्वसनीय।
  • नियम व सिद्धांतों पर आधारित।
  • मानक आधारित।
  1. अप्रमापीकृत / अमानकीकृत (Non-Standardized):
  • शिक्षकों द्वारा निर्मित।
  • क्षेत्र संकुचित।
  • कम विश्वसनीय।
  • विद्यालय स्तर पर निर्मित।
  • मानक आधारित नहीं।

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Topic: उपलब्धि परीक्षण के अन्य प्रकार

  • प्रमापीकृत में: क्या पढ़ना है, कैसे पढ़ना है का ज्ञान नहीं होता। (तुलनात्मक अध्ययन संभव)।
  • अप्रमापीकृत में: वास्तविक स्थिति का ज्ञान होता है।

अन्य वर्गीकरण:

  1. उद्देश्य के आधार पर:
  • सामान्य उपलब्धि परीक्षण।
  • नैदानिक उपलब्धि परीक्षण।
  1. सामग्री के आधार पर:
  • शाब्दिक।
  • अशाब्दिक।
  1. प्रशासन के आधार पर:
  • व्यक्तिगत।
  • सामूहिक।

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Topic: उपलब्धि परीक्षण (मापन स्वरूप व उद्देश्य)

  1. मापन के स्वरूप के आधार पर:
  • मानक सन्दर्भित (Norm Referenced - NRT)।
  • निकष सन्दर्भित (Criterion Referenced - CRT)।
  1. परीक्षा के आधार पर: मौखिक, लिखित, प्रायोगिक।
  2. प्रश्नों के आधार पर: वस्तुनिष्ठ, लघूत्तरात्मक, निबंधात्मक।

उद्देश्य:

  • बालकों की वास्तविक स्थिति का पता लगाना।
  • अधिगम की प्रभावशीलता का पता लगाना।
  • बालक के अभ्यास तथा क्रियाशीलता का ज्ञान करना।
  • कठिनाई स्तर का पता लगाना।
  • पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों में सुधार करना।

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Topic: उपलब्धि परीक्षण के उद्देश्य (जारी)

  • उद्देश्य प्राप्ति का ज्ञान करना।
  • बालकों की समस्या का निदान करना।
  • उपचार करना।
  • परामर्श व निर्देश देना।
  • कक्षा उन्नति करना।
  • बालकों का वर्गीकरण करना।
  • क्रमबद्ध करना।
  • अभिप्रेरणा देना।
  • कौशलों का विकास।

Note:

  • सबसे पहले मानकीकृत परीक्षण का प्रयोग: राइस महोदय (Rice)।
  • 1895 में।
  • 16000 बच्चों पर।
  • वर्तनी सुधार के 50 शब्दों पर प्रयोग।

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Topic: Kanhaiya Educentre (Promotional Page)

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